संस्कृति (रक्ता छन्द)

[10/23, 8:06 AM] डाॅ• राहुल शुक्ल:

संस्कारों व संस्कृति की याद तो आती है,
दिल में कहीं न कहीं लौ जल जाती है,
बस लौ ही जलाना तो जरूरी है,
साहित्यकार द्वारा समाज के लिए !
कौंधते से शब्द ही तो जरूरी है,
बाजार के लिए,
कुछ लिखना जरूरी है युवा की कतार के लिए, वर्तमान परिदृश्य भी दिखें,
जीवन सार के लिए,
सकल सार्थक ही हो हमारी लेखनी,
हर जगह संस्कृति की पहचान के लिए||

🙏  जय जय🙏
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

   ♤रक्ता छन्द♡

लोभ मोह छोड़िए|
क्रोध दंभ तोड़िए||
नेक  पंथ  पाइए |
सोम  गीत गाइए||

    🙏साहिल💐

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