♢ विमला छंद ♢
विधान ~[ सगण मगण नगण लघु गुरु ]
( 112 222 111 1 2)
11वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकान्त
सिय की कैसी सुंदर छवि है।
बरनै शोभा कौन सुकवि है।।
हिय सीता जू के चरन धरूँ।
नित माता को मैं नमन करूँ।।
~शैलेन्द्र खरे "सोम"
विमला छंद
गुरुजी को पाया नमन करूँ।
चरणों को ध्याऊँ हवन करूँ।।
क्षण को नाहीं विस्मरण करूँ।
जगता सोता भी स्मरण करूँ।।
मन मोहे मेरा सद्गुरु जी।
अब सच्चा है जीवन शुरु जी।।
बसते हैं मेरे यह उर में।
सुनना चाहूँ गुरु सुर में।।
मुकेश शर्मा 'ओम'
विमला छन्द
हे दाता मन पावन कर दो।
काया भी मनभावन कर दो।।
आया हूँ प्रभु लेउ शरण में।
हाँ दे दो अब स्थान चरण में।।
बिजेन्द्र सिंह सरल
♤विमला छंद♤
अब देरी होवे नहिं सजना।
बिन तेरे सूना मम अँगना।।
निदिया रूठी है अँखियन से।
बतियाँ रूठी हैं सखियन से।।
सब जाने देखो मम सखियाँ।
सपनों की नोचो नहिं पखियाँ।।
कस वाहों में आ सरस गही।
सुख देते मीठे वचन वही।।
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
विमला छन्द
(सगण+मगण+नगण+लघु+गुरु, ११ वर्ण, ४ चरण, २-२ चरण समतुकान्त)
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करते कैसा ढ़ोंग सतत ही |
रहता व्रीड़ा लीन जगत ही ||
मन की माया मौन सरल सी |
तन को कारे छीन गरल सी ||
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©भगत
विमला छन्द
(सगण+मगण+नगण+लघु+गुरु)
११ वर्ण, ४ चरण,
२-२ चरण समतुकान्त
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हरि का जाना है सरल सखी
सबकी आँखें हैं तरल सखी
मन मेरा होता विकल सखी
मुझको पीना है गरल सखी
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जमुना की धारें सिहर गयीं
मुरली की ताने बिखर गयीं
दुख से हो ग्वाले विकल गये
मथुरा को कान्हा निकल गये
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राकेश दुबे "गुलशन"
विमला छन्द
विधान- सगण मगण नगण लघु गुरु =11वर्ण चार चरण, दो- दो चरण समतुकान्त
मन मोहे प्यारे मदन लला ।
उर सोहे जाके रतन कला ।।
जब माता देखे सुत अपना।
जिमि हो कोई सुन्दर सपना ।।
मन राधा जी के अगन लगी ।
बिछड़े कान्हाॅ की लगन लगी।।
मुरली की तानें सुनन चली ।
उनकी बातों को गुनन चली ।।
चित तेरे बाँके चरण धरूँ ।
अपनी साँसों से भजन करूँ ।।
भर लो बाँहों में मनन करूँ ।
अपना लो मैं भी नमन करूँ ।।
बिजेन्द्र सिंह सरल
विमला छंद
शिल्प~[सगण,मगण,नगण,लघु-गुरु ]
( 112, 222, 111 , 1 - 2)
११वर्ण,४चरण,२-२चरण समतुकांत]
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वनबारी सारी विपद हरो।
मन मेरे आके शपथ धरो।।
भर बांहों में लू बस तुझको।
नहिं धोखा देना अब मुझको।।
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तन काला काली सज धज है।
जग माता का ही कण रज है।।
जब माया फैले कण कण में।
तब शक्ती पाये जन क्षण में।।
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कौशल कुमार पाण्डेय "आस"
३ अक्टूबर २०१७, सोमवार
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