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सोम छन्द कलश ~ 3

       ◆राधारमण छंद◆

विधान~
[नगण नगण मगण सगण]
(111  111  222  112)
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

रघुवर  सम  प्यारा  नाम  नहीं।
बिन  सुमिरन के  आराम नहीं।।
अब चित धरिकै नित्यै भजिये।
कलिमल जगती माया तजिये।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

     गीत (लावणी छंद में)

●रावण की जलन●
   
त्रेता में तो केवल मैं था,
                       अब घर-घर में पाओगे
ओ आपस में जलने वालो,
                        कैसे   मुझे जलाओगे......
                       (1)
मैं ने ही मारा है मुझको,
                   मैं ही सबको मार रहा।
मैंने सदा सत्य जाना है
                   मैं भी ये स्वीकार रहा।।
मेरी नही जरूरत अब तो
                  जनकराज हरते सीता।
देवर लखन देखते छुपकर
                  राम बिचारे भयभीता।।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
                          कैसे सिया बचाओगे......
                        (2)
मैं तो श्रापित था अनजाने
              वह तो प्रभु की माया थी।
मैंने  कहाँ  हरी  थी सीता
                 वो सीता की छाया थी।।
गली-गली में अब के रावण
                 सीताओं  को  हरते हैं।
मैंने तो क्या किया पाप है
               अब जो रावण करते हैं।।
हुए राम भी मेरे जैसे,
                          कैसे मुझे मिटाओगे......
                        (3)
वही जलाये पहली तीली
             जो मुझसे पापी कम हो।
जिससे हसी खुशी जल जाऊँ
          जलते नहिं मुझको गम हो।।
सदा अमर हूँ सबके कारण
                   आयें जायें राम कई।
गली-गली में चेले मेरे,
                 घूमते खुलेआम कई।।
सत्ता के गलियारों में भी
                     अब मुझको ही पाओगे......
                       (4)
मुझे जलाते हो सदियों से
           अब तक जला न पाये हो।
कारण,अपने रोम-रोम में
             मुझको आप बसाये हो।।
सत्य हमेशा सत्य रहेगा
                 चोला जरा उतारो तो।
"सोम"कहें अपने अंदर का
                रावण पहले मारो तो।।
मैंने कब सोचा था इक दिन
                        मुझसे आगे जाओगे......

                            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       ♢ पदममाला छंद♢

शिल्प~ [रगण रगण गुरु गुरु]
(212  212  2 2)
8 वर्ण/चरण,4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत।

नित्य  मैंने  पुकारा है।
आपका ही सहारा है।।
नाथ ऐसी कृपा कीजे।
दास  मोहे बना लीजे।।
        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

      विमला छंद♤
विधान ~[ सगण मगण नगण लघु गुरु ]
( 112   222  111  1   2)
11वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकान्त

सिय की कैसी सुंदर छवि है।
बरनै शोभा कौन  सुकवि है।।
हिय सीता जू  के चरन धरूँ।
नित माता को मैं नमन करूँ।।
         ~शैलेन्द्र खरे "सोम"

        ♢ कुसुमसमुदिता छंद ♢

विधान~[ भगण नगण नगण गुरु]
             (211 111 111  2)
10वर्ण,4 चरण,  दो-दो चरण समतुकांत]

कोमल तन  पिकबयनी।
यो  चितवन  मृगनयनी।।
धारत   जब  पग धरनी।
चंचल  मुनि  मन हरनी।।
        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

             ~ कुछ छन्दों की सूची ~
मुख्य तो सभी छंद हैं जिनकी संख्या बताना मुश्किल है,हाँ प्रचलित कुछ छंद अवश्य रख रहा हूँ,ये सूची बहुत लम्बी होगी कहाँ तक बनाई जाय पर कुछ छंद ये हैं|

1-मरहटा
2-इंदिरा
3-भृमर विलासिता
4-प्रमिताक्षरा
5-मंदाकांता
6-पृथ्वी
7-दीप
8-नील
9-शिखरिणी
10-कुसुमविचित्रा
11-भालचन्द
12-मणिमाल
13-चंचरी
14-गीतिका(वर्णिक)
15-शार्दूलविक्रीडित
16-भृन्ग
17-मनविश्राम
18-स्रग्धरा
19-मालिनी
20-भुजंगी
21-चम्पकमाला
22-स्वागता
23-अमृतगति
24-शालिनी
25-दोधक
26-रथोद्धता
27-कली
28-मनहरण
29-वंशस्थ
30-हरिणी
31-मंजुभाषिणी
32-भुजंगप्रयात
33-हीर
34-इंद्रवशा
35-हरिणप्लुत
36-पुष्पिताग्रा
37-आख्यानिकी
38-विपरीताख्यानिकी
39-द्रुतमध्या
40-मुरली
41-वेगवती
42-पंकजवटिका
43-प्रहरणकलिका
44-अनन्द
45-हरिलीला/मुकुन्द
46-राधिका
47-चौपइया
48-विष्णुपद
49-त्रिभंगी
50-वीर/आल्हा
51-तांडवरौद्र
52-रास
53-शंकर
54-मलयज
55-अनुकूला
56-रूपमाला/मदन
57-अहीर
58-वसन्ततिलका
59-रसाल
60-कर्ण
61-माहिया
62-ताटंक
63-वामा
64-मत्ता
65-एकावली
66-विमोहा
67-तिलका
68-शुभमाल
69-चौपई/जयकरी
70-विद्धुलेखा/शेषराज
71-सोमराजी/शंखनादी
72-उडियाना
73-नित
74-सुजान
75-मधुसार
76-बरवै
77-दिग्पाल
78-लीला द्वादस
79-सार
80-सरसी/कबीर/समुंदर
81-मुक्तामणि
82-मधुशाला/रुबाई
83-रूपमाला/मदन
84-तोटक
85-कनकमंजरी
86-कलाधर
87-चंचला
88-शोकहर/सुभंगी
89-चौपाई
90-कुंडलिनी
91-कुण्डलिया
92-रोला
93-सोरठा
94-दोहा
95-हरिगीतिका
96-सवैया(14 प्रकार)
97-घनाक्षरी(9प्रकार)
98-राधा
99-मनहरण
100-इन्द्रवज्रा
101-मौक्तिक दाम छंद
102-कुलटा
103-कुसुम
104-कुसुमवती
105-गजपति
106-गाथ
107- घनमयूर
108-चकिता
109- गिरिधारी
110-सुदर्शना
111- कुसुसमुदिता
112-सुधानिधि दण्डक
113-घनश्याम
114-सुगीतिका
115-धाम
116-संयुत
117-धुनी
118-ललना
119-हलमुखी
120-सिंहनाद
121-कुबलयमाला
122-असंबधा
123-वितानवृत
124-द्रुता
125-धारी
126-द्रुतविलम्बित
127-द्रुतपट्टा
128-द्रुतपद
129-द्रुतगति
130-सुचन्द्रप्रभा
131-सुखेलक
132-शालिनी
133-चित्रपदा
134-विजोहा
135-वसुमति
136-विमला
137-विमलजला
138-वीरवर
139-वर्ष
140-शील
141-सुगीतिका
142-मंगली
143-मञ्जरी
144-मत्तमयूर
145-मंजारी
146-दीपिकाशिखा
147-वापी
148-धार
149मनोज्ञा
150-संयुत
151-उल्लाला
152-पदम
153-पावक
154-पीनश्रोणी
155-पुट
156-पदममाला
157-शुद्ध गीता
158-अनुष्टुप
159-पंकजमुक्ता
160-पंक्ति
161-पंक्तिका
162-पंचमगति
163-पंडव
164-पवन
165-पवित्रा
166-पुण्डरीक
167-पुटभेद
168-बृहत्य
169-ब्रह्म
170-बुद्बुद
171-बिंदु
172-प्रतिभा
173-ब्रह्मरूपक
174-भूमिसुता
175-यादवी
176-यशोदा
177-शुद्ध विराट
178शारदी
179-मकरन्द
180-मनोरमा
181-भाम
182-रक्ता
183-रुगी
184-रचना
185-रञ्जन
186-रंजिता
187-रति१
188-रति२
189-रति३
190-रतिपद
191-रत्नकरा
192-रथपद
193-रतिलीला
194-रतिलेखा
195-रसना
196-रम्या
197-रमा१
198-रमा२
199-रमेश
200-रमणीयक
201-पवन
202-रति१
203-रसाल२
204-राग
205-मदकलनी
206-सुनंदनी
207-महामोदकारी
208-चंडरसा
209-रुचिरा१
210-रुचिरा२
211-रुचिरमुखी
212-पावन
213-रुक्मवती
214-रुचि
215-रामा
216-राधा
217-राधारमण
218-राजहंसी
219-माणवक्रीड़ा
220-लघुगति
221-वरूथिनी
222-लालसा

प्रिय मित्रों,
वर्णिक छंद सम,अर्धसम एवं विषम तीन प्रकार के होते हैं।इन छंदों में प्रति पंक्ति वर्ण-क्रम एवं संख्या की नियत योजना रहती है।

वर्णिक छंद के 'साधारण' तथा 'दंडक' — वर्ण-वृत्तों में सामान्यतः 26 वर्ण प्रति-पाद होते है 26 से अधिक वर्णों वाले छंद दंडक वार्णिक छंद होते हैं।

वर्णिक जातियों के नाम एवं प्रस्तार-विधि द्वारा उनके संभव भेदों की संख्या:-

वर्ण संख्या      जाति-नाम        प्रस्तार-भेद 

..... 1  ~~~~ उक्ता .........................2

..... 2  ~~~~ अत्युक्.......................4

..... 3  ~~~~~मध्या .......................8 

..... 4  ~~~~  प्रतिष्ठा ....................16

..... 5 ~~~~~ सुप्रतिष्ठा .................32

..... 6  ~~~~~ गायत्री ...................64

..... 7    ~~~~~उष्णिक ..............128 

..... 8    ~~~~~अनुष्टुप ...............256 

..... 9    ~~~~~बृहती .................512

..... 10  ~~~~~पंक्ति ................1024

..... 11  ~~~~~त्रिष्टुप ...............2048

..... 12  ~~~~~जगती ..............4096

.... 13  ~~~~~अति जगती ........8192 

.... 14  ~~~~~शक्वरी ............16384

.... 15  ~~~~~अतिशक्वरी ......32768

.... 16   ~~~~~अष्टि ...............65536

.... 17   ~~~~~अत्यष्टि .........131072

.... 18   ~~~~~घृति .......... ..262144

.... 19  ~~~~~अतिघृति ........524288

.... 20  ~~~~~ कृति ...........1048576 

.... 21  ~~~~~प्रकृति ..........2097152

.... 22  ~~~~~आकृति ........4194304

.... 23  ~~~~~विकृति ...........838808

.... 24  ~~~~~संस्कृति ........1677216

.... 25  ~~~~~अतिकृति ...33554432

.... 26  ~~~~~ उत्कृति .....67108864

                             संकलन~शैलेन्द्र खरे"सोम"

     ♤ सूर घनाक्षरी ♤
शिल्प~(8,8,8,6 वर्ण चरणान्त में लघु या गुरु दोनों मान्य)

केशरी के नंदन जू,
    हे जगत वंदन जू,
       दानव  निकंदन जू ,अंजनी लाल जू।
बल बुद्धि के निधान,
   सकल गुणोंकी खान,
       महावीर बलवान,कालोंके काल जू।।
बीर बली रामदूत,
   हनुमान वायुपूत,
     अंजनेय विपदा को,नाशौ तत्काल जू।
आपके सेवों चरण,
    संकट करो हरण,
      पड़ा है सोम शरण,कीजे निहाल जू।।
                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य