क्रिया
क्रिया = जो शब्द किसी कार्य के होने या करने का बोध कराता है |
हिन्दी में "मूल क्रिया शब्द के अन्त में +ना होना आवश्यक है |
क्रिया का मूल रूप "धातु" कहलाता है | हिन्दी के मूल क्रिया शब्द के अंतिम +ना को हटाकर शब्दान्त हलन्त करने से "धातु" बनती है |
जैसे~
पढ़ना लिखना चलना
पठ् लिख् चल्
🙏शब्दान्त में +ना होना तो क्रिया शब्द का लक्षण है , वस्तुत: उस शब्द में परिभाषा भी घटित होनी चाहिए 😊
जैसे ~ चलना , अन्त में +ना है ही और इस शब्द के अर्थ से "चलने का या गति का" बोध होता है, अत: यह क्रिया शब्द होगा |
परन्तु
टखना, अन्त में +ना तो है, लेकिन इस शब्द से "किसी प्रकार की क्रिया के होने या करने का बोध नहीं होता , अत: यह क्रिया शब्द तो नहीं ही होगा |
ऐसे ही ~
सोना क्रिया शब्द नहीं है, भले ही शब्दान्त में "+ना" हो
कुछ क्रियाओं की धातु बदल जाती है , जैसे ~ "फेंकना" की धातु "क्षिप् या मुच्" होती है , इसी प्रकार "दौड़ना" की धातु "धाव्" होती है |
हमें "धातु" से यहाँ कोई मतलब नहीं है|
"धातु" केवल प्रत्यय पढ़ते समय काम आएगी , अत: हमारा पूरा ध्यान "क्रिया शब्द" पर होना चाहिए|
स्वतन्त्र शब्द को सुनिश्चित "क्रिया" नहीं कहा जा सकता ; हो सकता है कहने वाले का मन्तव्य "एक खनिज/ धातु" से हो, जो गहने बनाने के काम आती है|
हाँ !, प्रश्न में ही आ जाए तो उत्तर क्रिया भी हो सकता है |
वाक्य में "सोना" हो तो वाक्य का अर्थ बता ही देगा कि "क्रिया है या धातु विशेष"
🙏 संस्कृत में "क्रिया को ही धातु" कहते है, पर हिन्दी में "धातु में "+ना" जुड़ने पर "क्रिया" का मूल रूप बनता है|
~ क्रिया के प्रकार ~
मुख्यत: क्रिया के दो प्रकार हैं ~ १. सकर्मक २. अकर्मक
सकर्मक क्रिया = कर्म के साथ आने वाली क्रिया
यानि कि सकर्मक क्रिया का फल कर्त्ता से पहले कहीं और पड़ता है, बाद में कर्त्ता पर|
अकर्मक क्रिया = बिना कर्म के आने वाली क्रिया
यानि कि अकर्मक क्रिया का फल सीधे ही कर्त्ता पर पड़ता है |
🙏 क्रिया का निर्धारण करने के दो सूत्र हैं~
१. स्वतंत्र क्रिया (बिना वाक्य के और "+ना" जुडा़ शब्द) का निर्धारण
और
२. वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का निर्धारण
स्वतंत्र क्रिया (बिना वाक्य के और "+ ना" जुड़ा शब्द) का रूप निर्धारित करना हो तो हम इसे "प्रयत्न या कोशिश" के आधार पर करेंगे ~
क. यदि उस क्रिया (शब्द) को करने के लिए हमें किसी प्रकार का प्रयत्न या कोशिश करनी पड़ती हो (यानि कि वह क्रिया अपने आप न होती हो), तो "सकर्मक क्रिया" कही जाएगी |
ख. यदि उस क्रिया (शब्द) को करने के लिए किसी प्रकार का प्रयत्न या कोशिश नहीं करनी पड़े (यानि कि वह क्रिया अपने आप, स्वाभाविक रूप से होती हो), तो "अकर्मक क्रिया" होगी |
विशेष ~
कुछ क्रियाएँ "दोनों प्रकारों का सम्मिश्रण" होती है |
अत: ध्यान रहें कि "कोई क्रिया 'अकर्मक+समकर्मक' हो सकती है, पर कभी भी 'सकर्मक+अकर्मक' नहीं हो सकती; क्योंकि कोई क्रिया एक बार प्रयत्न से हो जाने पर बिना प्रयत्न कैसे हो सकती है |
एककर्मक क्रिया = सकर्मक क्रिया
जहाँ एक ही कर्म होता है, एककर्मक कहलाती है|
जैसा कि "सकर्मक-अकर्मक" के प्रकरण में हमने पढ़ा है |
उदा०~
रमेश बाजार गया है |
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कर्त्ता कर्म. क्रिया. काल
🙏 जय-जय
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