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वैदिक पद्यानुवाद (निर्मल जी)

[6/29, 09:49] जागेश्वर निर्मल: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🌺ओ3म् नमस्ते ओ3म्🌺
          🌺विनय 🌺
🌴अथ मनसापरिक्रमामंत्रा:🌴

ओम् प्राची  दिगग्निरधिपतिरसितो
रक्षितादित्या इषवः। तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योस्मान् द्वेष्टि व्यं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः।।
🚩पद्यानुवाद🚩
आगे  बढने का सदा
अग्ने करूँ  प्रयास ।
विद्वानों की सीख से
हो बंधन का नाश।।

सब गुण  केअधिपति तुम्हें
बारम्बार प्रणाम ।
सबके रक्षक प्रभु  तेरे
गायें गीत ललाम।।

हमसे करते द्वेष जो
जिनसे हम विद्वेष।
सबको  तेरी तुला  पर
रखते हैं विश्वेश।।

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल"
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

[6/29, 10:00] जागेश्वर निर्मल: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
  🌺ओउम् नमस्ते ओ3म्🌺
           🔯विनय 🔯
ईंखयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातुमपासते।वन्वानासः सुवीर्यम्।
  🌴सामवेद  2'2 1/2'4-1🌴
          🚩पद्यानुवाद🚩
प्रभु  का नाम महान है बन्दे
कर प्रभु  का गुण गान रे  बन्दे
बन अवगुण की खान न बन्दे।
प्रभु  का नाम -----------'---'

प्रभु का नाम लिया  करता जो
उस अनुरूप ही जीवन भी हो
बन सत्पात्र समान  रे बन्दे ।
प्रभु  का नाम-----------'--
यम अरु नियम कभी  मत छोड़ो
प्रभु  के मार्ग से  नाता जोड़ो
जय की पकड़ कमान रे बन्दे।
प्रभु  का नाम- -----------------
अपना और न  गैर  है कोई
समझे  "निर्मल" भक्त है  सोई
कर परमार्थ  सुजान  रे बन्दे ।
प्रभु का नाम----------------

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल"

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
[7/7, 07:19] जागेश्वर निर्मल: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🕉ओउम् नमस्ते ओ3म्🕉
        🌺  विनय🌺
ओउम् स्वस्ति नो मिमीतामश्विना
भगः स्वस्ति देव्यदितिर्नर्वणः।
स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नःस्वस्ति द्यावा पृथिवी सुचेतुना।।

ज्ञानी देवे चेतना
दिनकर चन्द्र समान।
द्यावा भू गिरि मेघ सब
करें दिव्य कल्याण।।

ओउम् स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै
सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः।
वृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः।।

वायु सोम रवि के गुणों
को देवें हम ध्यान।
ज्ञानी गुरुजन निज करें
शिष्य प्रशिष्य महान ।।

जागेश्वर प्रसाद"  निर्मल"

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
[8/6, 20:01] जागेश्वर निर्मल: 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
*****************
*****************
रक्षा बंधन का संदेश
****************
*****************

राखी को त्योहार न समझो
राखी एक विचार है।
हर नारी की रक्षा ही
मानवता का सिंगार है।।राखी----

आंच न आये इन पर कोई
काली घटा न छाये कोई
इनके अंधरों की मुसकानें
पतझड़ नहीं चुराये कोई
नारी का सम्मान  जहां है
टिकती वहीं बहार है।। राखी-----

कहीं न हो उत्पीड़ित कोई
नहीं कोई आत्मा हो सोई
ऐसी दिव्य वाटिकाएं ही
सके चतुर्दिक जायें बोई
तभी हमें रे जय माता की
कहने का अधिकार है।। राखी----
सारा विश्व बनें मनभावन
यही सिखाने आता सावन
पुरुष बनें सारे शिव सुन्दर
हों नारी गौरा सी पावन
बनें सुसंस्कृत धरती सारी
हरना हर अंधियार है।। राखी----

जागेश्वर प्रसाद निर्मल
अजमेर (राजस्थान)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
[8/14, 20:44] जागेश्वर निर्मल:
🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🔯 ओउम्  नमस्ते  ओ3म्🔯
       🚩जय श्री कृष्ण 🚩

कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर
   राष्ट्रवादी बनने  का प्रण करो
         नाचना गाना बन्द करो
   देश  का लहू पानी  न बनाओ
          वीरों  की पूजा  करो
                   वीर  बनो
गीता  पढो, गीता सुनो, गीता  के
     बताये रास्ते पर चलो,
         अपने  जीवन  को
           कृष्णमय करो
आज राष्ट्र को चक्र सुदर्शन धारी
कर्म योगी  भगवान  श्रीकृष्ण
के गुण  कर्म और स्वभाव को
अपना कर सच्चा कृष्ण  भक्त        
बनने की आवश्यकता है ।

     🌺 जय श्री कृष्ण 🌺

कंस और  दुर्योधन की
संस्कृति  का नाश करो।
कृष्ण की जय जयकार करो।।
दूधदही घी का सेवन हो
जीवन से प्यारा गोधन हो
कहीं  न गउवें काटी जायें
घर घर में पैदा मोहन हो
यह  स्वीकार करो।
चक्र सुदर्शन  जिसके कर हो
अन्यायी को जिससे  डर हो
देश नर्क की ओर जा रहा
निर्माणों की ओर नजर हो
माता  बहन और  बेटी की
पीर पुकार  हरो।।
कंस और दुर्योधन की-----'----
मान शकुनियों को मत दीजे
राष्ट्रद्रोह को क्षमा न कीजे
अत्याचार  उठाये फन तो
चूर चूर सिर को कर दीजे
नाच गान के घोर जहर सॆ
ऊपर देश  करो।।
कंस और दुर्योधन की---'-------
विषय वासना  से  बचना  है
"निर्मल" गीता का कहना है
कृष्ण कर्म योगी थे अपने
हमें  कर्म पूजा  करना है
काम जवानी  देश के आये
देश से प्यार करो।।
कंस और दुर्योधन की--------

जागेश्वरप्रसाद " निर्मल"
अजमेर (राजस्थान)

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
[8/27, 07:40] जागेश्वर निर्मल: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉         
    🌺ओउम् नमस्ते ओ3म्🌺
              🔯विनती 🔯
ओउम् तं प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथाज्येष्ठतातिं बर्हिषदं स्वर्विम्।प्रतीचीनं वृजनं दोहसे धुनिमासुं जयन्तमनु यासु वर्द्धसे।।
उपयामगृहीतोsसि  शण्डाय त्वैष ते योनिर्वीरतां पाह्यपमृष्टःशण्डो
देवास्त्वा शुक्रपाः प्रणवन्त्वनाधृष्टासि।।
        🌴यजुर्वेद 7/12🌴
            🚩पद्यानुवाद🚩
करेंगे प्रभु  तेरा विस्तार ।।
हृदय वासना शून्य     बना ले
सुख प्रकाश उस प्रभु से पाले
हो जाते हैं दोष दूर यों
तम ज्यों लख भिनसार।
करेंगे प्रभु- ------------------
आत्मिक शक्ति बढ़ेगी तेरी
कार्य सिद्धि होगी बिन देरी
पुरा नवीन देवियों देवों
जैसे उसे पुकार ।
करेंगे प्रभु- ------------------
भव्यभाव से अन्तः भरले
दिव्य ज्योति उर ज्योतित करले
यम नियमों को कर गृहीत तू
प्रभु का पाले प्यार ।
करेंगे प्रभु -------------------
जो शम आदिक हैं गुण वाले
उनके जीवन  वही संभाले
शान्त वीर की जीवन  नैय्या
वही लगाता पार।
करेंगे प्रभु- -------------------
अन्दर का मल जिसने  धोया
संयम सत्संग के  तरु बोया
रे निर्मल तुझे करे न कर्षित
अपनी ओर विकार।
करेंगे प्रभु- ---------------------
जागेश्वर प्रसाद  निर्मल
अजमेर (राजस्थान)
🕉🕉🕉🕉
🕉🕉🕉🕉
[9/21, 07:24] जागेश्वर निर्मल: 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
आओ शक्ति की साधना करें
**********************
मुट्ठी भर संगठितअसुरों से
असंगठित
बहुसंख्क देव गण
अनादिकाल से
पिटते रहे हैं
और आगे भी पीटे जायेंगे
अकेले  अकेले  शत्रुओं से लड़कर
शत्रु  कभी पराजित
नहीं किए जा सकते
इन डांडियों से और
हर चौराहे पर की जाने वाली 
शक्ति  साधना
को देखकर दुश्मन
पहले सेअधिक सुसंगठितऔर
सावधान  हो गया है
अनेकता में एकता
हिन्द की विशेषता
का सिद्धांत
हमारे अस्तित्व  के लिए
एक बहुतबड़ा खतरा बन गया है
हमारे  मेले  तीज त्योहार
अलग अलग साधना
हमारे  लिए  घातक  सिद्ध हुई हैं
और हम आज भी उसी विनाशकारी दिशा कीओर जारहेहैं
राष्ट्र के अच्छे लोगो एक हो जाओ
कोई भी कार्य करो मिलकर करो
एक जगह करो 
एक ही समय करो
जब तुम  सब एक हो जाओगे
तुम्हारी शक्ति  साधना  सार्थक
हो जायेगी 
जब तुम एकता की दुर्गा की
साधना करने  लगोगे
राष्ट्र के दुर्ग को
कोई नहीं  हिला पायेगा
आओ वीर भोग्या वसुन्धरा की साधना करें
राष्ट्र के बच्चे बच्चे को
तन और मन से 
स्वस्थ करने का
प्रयत्न करें
जय मां की तभी  होगी
जब तुम्हारे अंदर शक्ति होगी।

जागेश्वर प्रसाद  निर्मल
अजमेर (राजस्थान)
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

[9/27, 18:44] जागेश्वर निर्मल:
***********************
          शक्ति पूजा
************************
हर मां बहन और बेटी है
असली शक्ति हमारी।
इनके अधर सदा मुसकायें
यही है चाह हमारी ।।
जब तक नारी का उत्पीड़न
शोषण  यहाँ  रहेगा
होंगी रोगाक्रान्त  कुपोषण
घेरे इन्हें  रहेगा
मुक्ति  क्रूरता  से पानी तो
करिए सिंह सवारी ।
हर मां बहन ------------------'
असुरक्षित ये भीतर  बाहर
ऐसी बही हवा है
तार तार रिश्ते नाते हैं
कैसा गजब हुआ है
स्नेह प्यार लगते ढकोसले
झुलस रही फुलवारी ।
हर मां बहन----------------
चेतन प्रतिमाओं का आदर
पड़ता नहीं दिखाई
पूज पूज कर ईंट व पत्थर
है दुनिया पथराई
द्रुपदाओं के आँसू पोछो
बनकर कृष्ण मुरारी ।
हर मां बहन--------------
जय माता की बोलने वाले
सौ चेहरे रखते है
बाहर राम कृष्ण  भीतर
रावण व कंस रखते हैं
शक्ति की पूजा करते" निर्मल"
घर की शक्ति है हारी।
हर मां बहन------------

जागेश्वर प्रसाद" निर्मल"
अजमेर( राजस्थान)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
[10/5, 11:37] जागेश्वर निर्मल: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🌺ओ3म् नमस्ते ओ3म्🌺
          🔯विनय🔯
ओउम् इमा उ त्वा पुरूवसो गिरो वर्धन्तु या मम।पावकवर्णाः शुचयो विपश्चतोऽभि स्तोमैरनूषत।।
🌴सामवेद 3 2 1/2 1---8🌴                     🚩पद्यानुवाद🚩
तन मन धन सर्वस्व निसारूं।
तुम पर प्रभु निज जीवन वारूं।।
तन मन धन-------''''

गीत तुम्हारे  निशिदिन गाऊं
नाम रसायन पियूं पिलाऊं
तेरे रंग  में रँग जाऊँ मैं
तुम जीतो मैं तुमसे हारूं।
तन मन धन----------

मैं निर्धन हूँ  धन तुम मेरे 
तुम हो स्वामी सबकुछ मेरे
तेरी प्रीति में होकर विह्वल
कोकिल सा दिनरात पुकारूँ ।
तन मन धन-----------'''

चारों ओर तुम्हारी छवि है
तू दुनिया का अप्रतिम कवि है
तेरी "निर्मल "कविता को मैं
गा गा दोनों लोक सँवारूं।
तन मन धन-------------'''

जागेश्वर प्रसाद" निर्मल"
अजमेर( राजस्थान)
🕉🕉🕉
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
[10/5, 11:38] जागेश्वर निर्मल: 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
*************************
             ।। मेरा कान्हा।।
**************************
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
बात बात में हाँ करता है
बात बात में ना-ना।
देख सखी री नाना नखरे
करता मेरा कान्हा।।देख सखी री-
भोजन भर के  थाली  लेता
फेंके कम पड़ जाये
खाता है भर पेट न सजनी
इधर उधर बिखराये
खूब खिलाता है चिडियों को
बड़े प्यार से दाना।।देख सखी री--
कूर कूर करता कुत्ते को
चूर के डाले रोटी
गैया के मुखड़े में भरता
रोटी छोटी मोटी
मीउँ मीउँ बिल्ली को करता
भाये दूध पिलाना।।देख सखी री--
बिना साथियों  के कुछ खाना
उसको नहीं है भाता
चुपके चुपके चोरी चोरी
खाता और खिलाता
पेट भरा हो जाता  चालू
गाना और बजाना।देख सखी री--

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल"
अजमेर (राजस्थान)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
[10/5, 11:48] जागेश्वर निर्मल: **************************
***************
विश्व शान्ति का द्वार
****************
सादा, जीवन उच्च विचार ।
यही  है, विश्वशान्ति का द्वार।।

मर्यादायें    यदि छोड़ेंगे
संस्कृति से नाता तोड़ेंगे
जिनसे कलुषित उर होते हैं
वहीं है मारामार  है।।यही है-------

सिने जगत की होड़ कर रहे
गलत मार्ग पर दौड़  कर रहे
सीख नअपनाई पुरखों की
झुलसेगा संसार।।यही है-------

कर न नुमाइश प्यारे तन की
चाल रोकना कठिन है मन की
करें अस्मिता  की  रक्षा निज
बनकर पहरेदार।।यही है-------

फैले हैं असुरों के घेरे
जो तेरे हैं और न मेरे
तार तार रिश्ते कर दे वह
क्या है रूप निखार ।।यही है-----

घर से बाहर सोचकर निकल
वापस घर फिर आना है चल
आग लगा दे जो जीवन में
मत वह राह निहार ।।यही है-----

माता बहन व बेटी  बोलो
ताऊ पिता व भैया बोलो
इन शब्दों  में भरा है जादू
सीखो इनसे प्यार ।।यही है-------

नहीं कहीं के रह जाओगे
ढंग विदेशी अपनाओगे
अपनी संस्कृति और सभ्यता
"निर्मल "रही पुकार ।।यही है-----

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल"
अजमेर (राजस्थान)
**************************

[10/5, 20:50] जागेश्वर निर्मल: (416)एक अभिशप्त कौम

दाहिर की बेटियाँ,
सिंध की सड़कों पर,
बदहवास हालत में,
रोती, बिलखती,रही,
पुकारती रही देश को,
लेकिन कोई नहीं आया,
राम का सारंग गायब,
हनुमान की गदा गायब,
कृष्ण का चक्र गायब,
अर्जुन का गांडीव गायब,
भीम का रक्त पान गायब,
रह गया केवल,
बुद्धम शरणम गच्छामि,
लंका क्यों नहीं जली?
महाभारत क्यों नहीं हुआ?
बेटियों की इज्जत,
सिंध से अरब तक,
नीलाम होती रही और,
हिमालय से सिंधु तक,
भारत वर्ष खामोश!

एक दो नहीं,सत्रह बार,
गजनवी आता रहा,
मंदिरों को लूटता रहा,
मूर्तियों को तोड़ता रहा,
कोई प्रतिरोध नहीं,
सारा सोना ले गया और तुम,
कहते रह गए,
बुद्धम शरणम गच्छामि,
गलती गजनवी की नहीं थी,
गलती तुम्हारी थी जो,
रक्त शांत हो गया था,
शांत रक्त वाले,
ऐसे ही इतिहास में,
कुचले जाते हैं,

तुम्हारे शास्त्र कहते हैं,
दुष्ट के साथ दुष्टता करो,
रक्त बीज का एक बूंद रक्त भी,
धरती पर शेष न रहे,
नामोनिशां मिटा दो,
फिर मुहम्मद गोरी को,
तराइन के प्रथम युद्ध में,
जीवन दान क्यों दिया?
तुममें व उनमें यही अंतर है,
तुम जीते,जीवन दान दिए,
वे जीते,काबुल उठा ले गए,
भला हो चंद बरदाई का,
काबुल में इज्जत तो रखा,
चौहान से कहा कि,
अब क्या बचा चौहान,
देश गया,धर्म गया,
दोनों आंखें चली गयी,
धरती छोड़ने से पहले,
एक काम करो,
गोरी को मार कर मरो,
तुम कुछ भी गलत नहीं करोगे,
कभी योगिराज कृष्ण ने,
नरो मरो वा कुंजरो वा कहकर,
द्रोणाचार्य जैसे धनुर्धर का भी,
बध करा दिया था,
और पृथ्वी राज चौहान ने,
चार बाँस, चौबीस गज,अष्ट अंगुल,
हृदय के नेत्र से देखकर,
गोरी को बेध डाला था।

एक लंगड़ा बहशी दरिंदा,
दिल्ली की सड़कों पर,
कत्लेआम करता रहा,
और तुम सोते रहे,
क्या चन्द्र गुप्त मौर्य की तलवार,
जंग खा गई थी?
तुम न नालंदा बचा सके,
न ही तक्ष शिला बचा सके,
आखिर क्यों?
इतिहास तो सवाल करेगा ही,
बुद्ध से पहले भारत पर,
क्यों आक्रमण नहीं हुए?
बुद्ध के बाद ही क्यों,
हमलों की श्रृंखला चली?
उस सत्य,अहिंसा,का क्या मतलब जो,
अपनी आंखों के सामने,
अपनों को न बचा सके,
बुद्ध तुमको यह इतिहास,
क्षमा नहीं करेगा,

चित्तौड़ गढ़ के दुर्ग में,
महारानी पद्मिनी का,
हजारों ललनाओं के साथ,
आग में जलकर सती होना,
तुम्हारे गाल पर तमाचा है,
वे नारियाँ क्या करती?
क्या सौंप देती अलाउद्दीन को,
नोचने,खसोटने,के लिए?
नहीं,यह उन्हें मंजूर नहीं था,
वे जान गई थी कि,
अब कोई राम आकर रावण से,
उन्हें नहीं बचाएगा,
अब कोई भीम,,नहीं है,जो,
द्रोपदी के अपमान के लिए,
दुर्योधन का जंघा तोड़ देगा,
उन्हें दिल्ली का हरम मंजूर नहीं था,
धन्य थे गोरा और बादल,
कुछ तो आन बान शान की रक्षा किये,
अन्यथा तो हम अपनों के कारण ही,
इतिहास में दफन होते रहे।

सम्पूर्ण दिल्ली सल्तनत काल में,
एक ही व्यक्तित्व दिखाई देता है,
विद्यारण्य,विद्यारण्य,विद्यारण्य,
वह भी एक हाड़ मांस का पुतला,
चाहता तो कबीर की तरह,
हिन्दू मुस्लिम एकता करता रहता,
लेकिन उसे यह स्वीकार्य नहीं था,
उसके अंदर का विद्रोह उसे,
चैन से जीने नहीं देता था,
कहता था कि उठो,कुछ करो,
सनातन हिन्दू धर्म के रक्षार्थ,
और उसने त्याग दिया व्यक्तिगत सुख,
हरिहर और बुक्का को मंत्र देकर,
बन गया मध्य युग का चाणक्य,
रचा दिया विजय नगर साम्राज्य,
हिंदुस्तान का मुकुट मणि,
ब्राह्मण अपने लिए नहीं जीता,
जीता है देश,धर्म,समाज,के लिए,
मरता है देश, धर्म,समाज,के लिए,

हम इस लिए गुलाम नहीं हुए,
कि हम बहुत निर्वीर्य थे,
वास्तव में हम शक्तिशाली थे,
लेकिन हम बिखरे हुए थे,
हम आवश्यकता से ज्यादा सत्यवादी थे,
यद्यपि विशाल जनमानस,
बुद्ध की अहिंसा के कारण,
रक्त निकाल नहीं सकता था,और,
शत्रु इसे अपना खेल समझता था,
राक्षसों के जंगली पन के मध्य,
जो जितना आदर्शवादी होता है,
वह उतना ही कुचला जाता है,
जिसे अपने देश,धर्म,पर अभिमान नहीं होता,
जो आपस मे ही लड़ता रहता है,
वह बार बार गुलाम होता है।
क्या आज भी हम इतिहास से,
सीख ले पाए हैं?
कोई किसी को गुलाम नहीं बनाता,
अपना कर्म ही गुलाम बनाता है।

[10/6, 08:07] जागेश्वर निर्मल:🕉🕉🕉
🕉🕉
🌺ओउम् नमस्ते ओ3म्🌺
           🔯विन य🔯
ओं भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति स नो
भग पुर एता भवेह।।
सभी  प्रशंसा करें आपकी
प्रगति करें हम सब अविराम।
ऐश्वर्यों से युत हम होवें
पूजनीय अरु हों निष्काम।।

भोजन समय की प्रार्थना
*******************
ओंअन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य। प्र प्र दातारं तारिष
ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे।।

जो भोजन करता सदा
स्वास्थ्य  व शक्ति प्रदान ।
ऐसा भोजन  ही हमें
दीजे  नित  भगवान ।।

शुद्ध  पवित्र व सात्विक
दिया है जिसने अन्न।
उसे अन्नपति कीजिए
जन धन से सम्पन्न।।

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल"
अजमेर (राजस्थान)
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
[10/10, 20:21] जागेश्वर निर्मल: अपनी विवेकशीला माँ बहन और
**************************
                  बेटियों से
                    ********
तुम न जाने कब से
अपने आपको
सजा रही हो
इसी सजने से तुम जमाने से
सजा पा रही हो
तुम्हारी  सजावट देखने  वाले
तुम्हारे घर  में
नहीं हैं  क्या ?
जहाँ
बहन बेटियाँ नहीं होती
तुम वहां क्यों जा रही हो?
तुम्हारे भोलेपन का  गलत अर्थ
लगाया गया है यहाँ पर
तुम जिन्हें सीधा समझ रही हो
उन्हीं के बीच अपना अस्तित्व दाँव पर लगाने जा रही हो 
जिन्हें नहीं है
चित्रकार की कला की बारीकियों का ज्ञान
हेशकुंतले !
तुम वहां क्यो अपनी कजा बुलाने जा रही हो
त्रेता के रावण
आज के रावण में
बहुत बड़ा अंतर है
यह रावण अपनी बहन बेटियाँ तक नहीं  छोड़ता
तुम्हें  छोड़ देगा
क्यों समझ नहीं पा रही हो।।
क्यों नहीं समझ पा रही हो।।

जागेश्वर प्रसाद निर्मल
[10/11, 07:32] जागेश्वर निर्मल: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
ओ3म् नमस्ते ओ3म्
          विन य
ओं उत त्वःपश्यन्न ददर्श वाचमुत त्वःशृण्वन्न शृणोत्येनाम्।उतो त्वस्मै तन्वं वि सस्रे जायेव पत्यउशती सुवासाः।।ऋ10/71/4   स0प्र0पृ0सं0-61
             पद्यानुवाद
सुनते हुए न सुनते हैं जो
देख के भी देखें नहीं ।
नहीं बोलते बोलने पर भी
अज्ञानी है जन वही ।।

शब्द अर्थ सम्बन्ध जो समझे
विद्या उसे है चाहती।
नारी जिसके लिए समर्पित
होती है,पति है वही ।।

जागेश्वर  प्रसाद "निर्मल"
अजमेर (राजस्थान)
🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

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वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य