[10/22, 12:03 PM] राकेश दुबे गुलशन: विषय- रक्ता छंद
विधान- रगण जगण गुरु
(212 1212) 7 वर्ण, 4 चरण
दो-दो चरण समतुकान्त
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काम क्रोध छोड़ के
भक्ति-भाव जोड़ के
राम नाम जापिये
पाप-पुँज काटिये
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राकेश दुबे "गुलशन"
22/10/2017
बीसलपुर/बरेली/मुज़फ्फरपुर
[10/22, 12:20 PM] सरस जियो:
♢ रक्ता छंद ♢
विधान~ [रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 )
7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
पूज लो गणेश को |
सिद्धि के विशेष को||
शारदे कृपा करो|
दुःख रोग को हरो||
सोम नाथ साथ हैं|
पा सदा सनाथ हैं||
प्रेम प्यास आस की|
बात हो विकास की||
भक्ति भाव संग हो|
प्रेम धर्म रंग हो||
प्रेम गीत गाइए|
भक्ति भाव पाइए||
इष्ट सोम देव हैं |
सर्वश्रेष्ठमेव है||
शक्ति पुंज सोम जी|
प्रेम भक्ति ओम जी||
गाइए मनाइए|
विष्णु रूप ध्याइए||
ब्रह्म को रचाइए|
तो महेश पाइए||
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
[10/22, 1:43 PM] विश्वेश्वर शास्त्री: *****रक्ता छंद*****
शिल्प -- रगण जगण गुरु |
SIS lSl S.
दो - दो चरण समतुकांत,
•~•~•~•~•~•~•~•~•~
राधिका निहारिये |
रास में पधारिये ||
हास लास कीजिये |
मान छोड दीजिये ||
२२-१०-१७
विश्वेश्वर शास्त्री "विशेष"
[10/22, 2:52 PM] ए•के• मिश्रा:
♧रक्ता छंद♧
शिल्प:-(रगण,जगण+गुरु)
श्याम नाम लीजिये,
नेक काम कीजिये,
पाप छोड़ दीजिये,
हाथ जोड़ लीजिये,
गोपिया निहारती,
भूल जो सुधारती,
नाथ साथ दीजिये,
थाम हाथ लिजिये,
©अखिल कुमार मिश्रा
[10/22, 3:32 PM] बिजेन्द्र सिंह सरल:
卐 रक्ता छन्द 卐
विधान- रगण जगण गुरु =7वर्ण
चार चरण दो- दो चरण समतुकान्त
आप की कृपा रहे ।
ज्ञान धार तो बहे ।।
सोम शील सिंधु हैं ।
शम्भु शीश बिंदु हैं ।।
आपसी उदारता ।
नैन को निहारता।।
ज्ञान दान दे रहे ।
दोष द्वेष ले रहे ।।
बिजेन्द्र सिंह सरल
[10/22, 3:51 PM] रेनू सिह जादौन:
रक्ता छंद
(212 121 2)
कृष्ण नाम ही रटें।
रोग दोष भी कटें।।
भूल चूक डार दें।
दुःख दर्द टार दें।।
रेनू सिंह जादौन
[10/22, 5:01 PM] मुकेश शर्मा जी:
♡रक्ता छंद♡
विधान~ [रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 ) 7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
प्रीत - गीत ही रचें।
द्वेष - भाव से बचें।।
भक्ति भाव हों सदा।
अन्य हों यदा-कदा।।
भक्ति की प्रधानता।
ओम दास मानता।।
बोल हों सदा खरे।
जी रखें हरे-भरे।।
मुकेश शर्मा
[10/22, 5:34 PM] जागेश्वर निर्मल:
♧ रक्ताछंद ♧
विधान
रगण जगण गुरु
212121 2 7वर्ण 4चरण
2-2चरण समतुकान्त
दीप दान कीजिए ।
देश गान कीजिए ।।
प्रेम रंग भीजिए।
दीन संग लीजिए ।।
भेदभाव दूर हो।
त्याग भाव पूर हो।।
धर्म सेतु को गहो।
प्रेम पीर को सहो।।
जागेश्वर प्रसाद निर्मल
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