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तिलका छन्द की जय जय

             ♤ तिलका छंद ♤
शिल्प:- [सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण )
   
              गुरु  चन्दन  है।
              पग  वन्दन  है।।

              गुरु  भोर करें।
              चहुँ और  करें।।

              गुरु फूल  लगें।
              हम  धूल  लगें।।

              गुरु   सागर  हैं।
              हम   गागर   हैं।।
             
              गुरु   हाथ  रखें।
              तब  नाथ  लखें।।

              गुरु  गीत   गढ़ें।
              मम  हीय  मढ़ें।।

              गुरु भक्ति मिले।
              तब शक्ति मिले।।

              गुरु सोम  मिलें।
              तब ओम खिलें।।
             
                    मुकेश शर्मा ॐ

           ♤तिलका छंद♡
शिल्प:- [सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण

जब   राम  चलें।
जन  आम  चलें।।
सब  के  मन  में।
चलिये  वन   में।।
सिय  राम   चले।
सह  लक्ष्मण   ले।।
चलते   वन   को।
तज  आँगन  को।।
यक   रावण  था।
ऋषि खावण था।।
पग     धरते   थे।
डरते   सब    थे।।
उस   दानव   ने।
नहिँ   मानव  ने।।
हर के  सिय को।
प्रभु के जिय को।।
रण  मोल लिया।
फन खोल दिया।।
हनुमान    मिले।
तब   सूत्र खिले।।
तब   युद्ध   हुए।
प्रभु  क्रुद्ध   हुए।।
वध   रावन  था।
सब   पावन था।।
जय   राम  कहूँ।
नहिँ  कष्ट   सहूँ।।
सब   नागर को।
भव  सागर  को।।
यह  ओम  कहें।
उर   सोम   रहें।।

     मुकेश शर्मा ओम

       □ तिलका छंद □
शिल्प:- [सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण )
   
              गुरु  चन्दन  है।
              पग  वन्दन  है।।

              गुरु  भोर करें।
              चहुँ और  करें।।

              गुरु फूल  लगें।
              हम  धूल  लगें।।

              गुरु   सागर  हैं।
              हम   गागर   हैं।।
             
              गुरु   हाथ  रखें।
              तब  नाथ  लखें।।

              गुरु  गीत   गढ़ें।
              मम  हीय  मढ़ें।।

              गुरु भक्ति मिले।
              तब शक्ति मिले।।

              गुरु सोम  मिलें।
              तब ओम खिलें।।
             
                   ~ मुकेश शर्मा ॐ

      
          तिलका छन्द
शिल्प- सगण सगण
           112 112  दो- दो चरण समतुकान्त । चार चरण 6वर्ण प्रति चरण

मम टेर सुनो ।
सब दोष गुनो ।।
तुम नाथ बनो ।
अब दास चुनो ।।

पितु मात कहे।
धरि धीर  रहे ।।
कछु क्षोभ भयो ।
अभिमान  गयो ।।

सुखधाम छले ।
वन राम  चले  ।।
भगवा तनके  ।
तपसी बनके  ।।

सरयू तट पे ।
उतरे झट से ।।
तजि नाव चढ़े।
रघुवीर  बढ़े  ।।

वन के मग में ।
तपते पग  में ।।
सिय सोच रही ।
सकुचाइ कही ।।

बिजेन्द्र सिंह सरल
    ♧तिलका छंद♧

शिल्प- सगण सगण
2-2   चरण  तुकांत
6 वर्ण प्रति  चरण
------------------------
मन      राम      रटो
प्रभु     नाम      रटो
अविराम          रटो
अविराम          रटो
------------------------
तन   को   मन   को
जग    में   धन   को
सब    मान     लिया
अभिमान       किया
------------------------
अब    देर    न    हो
जग    फेर   न    हो
सब    पाप       कटें
त्रय     ताप       घटें
------------------------
सब     क्रोध    तजो
प्रतिशोध        तजो
युग     बीत      रहा
यम    जीत      रहा
------------------------
सब    व्योम    धरा
एक    ओम    भरा
हरिनाम         सदा
परिणाम        प्रदा
------------------------
गिरना         उठना
थकना       चलना
जग     रीत    यही
मधु     गीत    यही
------------------------
सुख   हो  दुख  हो
रण    सम्मुख    हो
प्रभु    नाम     सदा
शुभदा       सुखदा
------------------------
राकेश दुबे "गुलशन"

        तिलका छंद
*********
विधान~सगण,सगण(112,112)
6वर्ण,4चरण,2-2चरण समतुकान्त।
------------------------------------------------
भज  राम  सखे।
सत लोक दिखे।।
खिल जाय जिया।
मिल जाय पिया।।

सत गान सुनो।
प्रभु राम चुनो।।
हनुमान   हँसें।
तब राम फँसें।।

सब दौड़ पड़ो।
बन वीर लड़ो।।
कर युद्ध अभी।
जय लंक तभी।।

कह राम रहे।
नहिं कष्ट सहे।।
हनुमान जला।
सब लंक भला।।

नहिं वीर वहाँ।
रण धीर यहाँ।।
मर लंक रही।
सच बात यही।।

कुछ देर रुको।
नहिं और झुको।।
सच बात करूं।
रण रक्त भरूं।।

कौशल कुमार पाण्डेय आस

   तिलका छंद
विधान- ---
112,112
सगण संगम

नित प्रात जगो।
शुभ काम लगो।।
उठ ओम जपो।
नित सोम जपो।।

मिल होम करो।
शुचि व्योम करो।।
शुभ लाभ वरो।
त्रय ताप हरो।।

नित योग करो।
हर रोग हरो।।
सुख भोग करो।
सब शोक हरो।।

जागेश्वर प्रसाद" निर्मल"

◆तिलका छंद◆
••••••••••••••••••••

अब धैर्य नहीं।
रण बीच कहीं।।
जय राम कहो।
पग"आस"गहो।।

सब मोह तजो।
प्रभु नाम भजो।।
परमार्थ    तभी।
तज स्वार्थ सभी।।

दुख होय नहीं।
मद खोय कहीं।।
सत भास मिले।
सब "आस"खिले।।

मन राम कहे।
तन श्याम गहे।।
सब शोक बहे।
नहिँ  रोग  रहे।।

कर प्रीत प्रिये।
तब मीत जिये।।
मन पावन हो।
तन सावन हो।।
        आस

     तिलका छंद
*********
विधान~सगण,सगण(112,112)
6वर्ण,4चरण,2-2चरण समतुकान्त।
----------------------------------------

हँसता रहता|
सबकी सहता||
दुख तू हर ले|
सुख को वर ले||

कहती सजनी|
सजती रजनी||
पहले यति है|
फिर तो गति है||

किसकी चलती|
दुनिया जलती||
अपनी गलती|
दिल में पलती||

रसकी मटकी|
छलसे पटकी||
चुप हैं बयना|
बरसें नयना||

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

नमन करूँ माँ शारदे ।
भरो ज्ञान के पुंज ।
भोर आगमन हो गया ।
अब दर्शन दो जगदम्ब ।।

भोर भई माँ खोलो अँखिया ।
दयादृष्टि हम पर कीजै।
भक्त खड़े हैं तेरे द्वारे ।
अब तो दरश दिखा दीजै ।

शुभ प्रभात की बेला आयी ।
पंछी के सुर दिए सुनाई ।
करें स्वागतम जगत ने मिलकर।
शारदे माँ की वंदना गाई ।
जागो जागो है जग जननी ।
वीणा वादिनी सरस्वती ।
मंगलमय मंगल रूप में आओ
अब तो दया दिखा दीजै ।

जब जब मेरी चले लेखनी ।
माँ तेरा गुणगान करूँ।
श्रद्धा भक्ति और विनय संग ।
पूर्ण तेरी महिमा लिखूं ।
सोम,सरस्,के भगत माँ ।
निर्मल सिद्धि नमन करूँ ।
मन मन्दिर में बसों भवानी ।
करके दया अपना लीजै। 

दूध दधि स्नान करो माँ ।
केशर चंद तिलक धरके ।
स्वर्ण मुकुट संग लाल भाल पे ।
स्वेत वस्त्र धारण करके ।
बैठि हंस पर शंख चक्र और ।
ले वीणा दर्शन दीजै ।।
भक्त खड़े हैं तेरे द्वारे ।
अब तो दरश दिखा दीजै ।

भावना शर्मा भक्तिराज बृजवासी
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