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भगत आस साहिल सरस,सरल सी हुई बात (यादें)

[10/28, 22:36] भगत गुरु: 🙏😊☝☝☝ अकिंचन का नाम नहीं जोड़ा जी,
कुछ नाम तो स्वानुभूत संयोजित होते हैं , संस्तुति-स्वीकृति की औपचारिकता ही नहीं होती ; सो कृपालु हों |

अकिंचन यथाशीघ्र व्यवस्था बनाने को प्रयत्नशील है |

[10/28, 22:42] डाॅ• राहुल शुक्ल: जी
अभी तो ये शिष्य भी बचा है|
बस आप का इंतजार था|
आपके बिन सूना संसार था|
दादाश्री आप प्रधान सम्पादक हैं|

[10/28, 22:49]
भगत गुरु: 😊🙏 विप्रवर, सेवक भी कभी स्वामी हुआ है , सेवक ही रहने दीजिए न |
अभिभूत हूँ आप सब के अजस्र नेह-वर्षण पर |

भगत चरण की शरण बस, भाव भरे मन लीन|
जय - जय  गुण आगार है, एक न दोषक छीन||

[10/28, 22:51] सरस जी: दादाश्री सादर प्रणाम स्वीकार करें |
आपके बिना तो विशेषांक नाम ही अधूरा है, आपको छोड़कर तो मैं इस विशेषांक की कल्पना भी नहीं कर सकता |
कोई गलती हुई हो अनजाने में तो अपने अनुज को क्षमा कर कृपालु हों |
जय जय
💐🙏🏻💐
आपके आने से बहार लौट आयी 😀👍

[10/28, 22:52] बिजेन्द्र सिंह सरल: अरे! इधर गुरुवर पधारे 🙏🏽 चरण वन्दन
🙏🏽 जय जय

[10/28, 22:53] सरस जी: आते ही निःशब्द कर दिया |
बहुत कुछ बातें करनी हैं आप से💐🙏🏻💐😀👌🏼

[10/28, 22:56] डाॅ• राहुल शुक्ल:
गुरु दर्शन संज्ञान से, बुद्धि मिलै अपार|
जय-जय की महिमा रहें,सदा भगत हो यार||
   साहिल
  जय जय

[10/28, 22:57] भगत गुरु:
😊🙏 कृपाकर, अकिंचन हमेशा आप सब के साथ है | हाँ, कभी-कभी काया बाधक हो आती है
प्रियवर,

कहत जगत में लोग सब, दोष   बने   गुण  आप |
जहाँ   बढ़े   है   हेत   ही, वहाँ    विकसता   ताप ;
खटक कौनिहुँ नहि पाये, सदा जय-जय मुसकाये ||
©भगत

[10/28, 23:00] भगत गुरु: 😊🙏 प्रियवर,
दूर   भले    नयननि    रहा, हृदय बिराजे आप|
आज पुनिअ समरथ भया, आपुहि हारक ताप ;
श्वाँस  की  गति  तुम सारे, भगत के प्राण सँवारे ||
©भगत

[10/28, 23:03] सरस जी:
एतबार हँसी गूँजे आपकी इस पटल पर|
कान तरस गये आपको सुनने को|
मैं तो समझा कि दादा का मोबाइल गिर गया, कोई और सीज कर रहा है, सो मन उदास हो गया, फिर पता चला कि दादा-----खैर ईश्वर ने प्रार्थना सुनी| प्रभु का लख लख धन्यवाद

[10/28, 23:05] भगत गुरु:
कृपालु
नेम क्षेम  संज्ञान  है, ज्ञान यहाँ विज्ञान |
रहे महागुणधर इहाँ, रचते नव द्विज्ञान ;
यार तो कीचड़ भैया, डूबोता हरदम नैया ||
©भगत

[10/28, 23:06] कौशल पाण्डेय आस: हृदय व्यथित था आप बिन,पाया कभी न चैन।
वाणी भी रुग्णित हुई, बोल सका नहिं बैन।।
भगत को भूल न पाया।
याद ने  बहुत सताया।।

ज्ञानशून्य जनचेतना, तके आपकी राह।
ज्ञान पनपता आप से, आप बिना बस आह।।
कष्ट सब पल पल सहते।
नहीं कुछ मुख से कहते।।
     🙏आस

जीवन की थी  शाम ही, मगर हुई वह भोर |
दीप जला था आस का, नेह रहा सब ओर ;
जोर चल ही नहि पाया, भगत फिर से उठ आया||😃
    ©भगत

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