कर्तव्य
बड़े बुजुर्गों ने सिखाया,
गुरुओं ने भी याद कराया,
कठिन डगर पर भटक न जाना
अपने कर्तव्यों को निभाना |
सदा प्रज्जवलित कर्मों से,
आदर्शों के मर्मो से,
सत्य सनातन धर्मो से,
अपने कर्तव्यों को निभाना |
सदा प्रेम से जीते जाना,
सुख- दुख तो है आना जाना,
आशा का ही दीप जलाना,
अपने कर्तव्यों को निभाना |
© डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
गज़ल
1222 1222 1222
हवाओं ने कहा है ये घुटन कैसी|
कटे उस पेंड़ से पूछो चुभन कैसी||
ख़ता थी उन ख़तो की जो लिखे तुमने|
जवाबी ख़त जलाने में जलन कैसी||
समझ इतनी कि खुद को नासमझ कहती|
मिलन की आग में जलती अगन कैसी||
नहाना झील में उसका क़यामत था|
नज़र में हुस्न की मदिरा मगन कैसी||
कमल की उस कली में जब भरे खुशबू |
महकती फिर जवानी आदतन कैसी||
सरस की प्यास कोई आ बढ़ा जाए|
चली है आज देखो तो पवन कैसी||
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©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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साथ - साथ साधना के
सात हुए वर्ष हैं|
प्रीत भरी भावना का
हर्ष ही हर्ष है|
संग संग हम चले,
मधुर रंग रच गए,
सब दुख दर्द तो,
स्नेह में बह गए|
दिल के अरमान सब,
पूरे भी हो रहे|
जोड़ी कमाल है,
जग वाले कह रहे|
साहिल भी सागर से,
प्रतिपल दुआ करे|
भावना प्रवीन की,
हर जनम हुआ करे|
डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
इलाहाबाद
🥧इन्दवज्रा -छंद
शिल्प~समवर्ण, चार चरण,
प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण
और अन्त में दो गुरु /११ वर्ण
( 221 221 121 22 )
बातें बनाना मन चाहता है|
वादे निभाना तन चाहता है||
मेरी कहानी सब जानते हैं|
तारा सुहानी सुख मानते हैं||
बंशी वही कारण ढूंढ़ती हैं|
धारा सही तारन ढूंढ़ती हैं||
प्रेमी पुराना सुर साधता है|
साथी लुभानी लय बाँधता है||
डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
🌹 मुक्तक
बहर-212, 212 , 212 ,212
साथ तेरा जनम भर निभाता रहा,
प्यार के भाव से गीत गाता रहा|
जिन्दगी संग में यूँ ही' कटती रही,
प्रीत की बात को गुनगुनाता रहा|
नासमझ मैं रहा शक्ल पर मर गया,
प्रीत को रीत उसने बताया मुझे|
खेल ऐसा हुआ साहिल फँस गया,
मीत को जीत मैं तो समझता रहा|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
इलाहाबाद उ० प्र०
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