कर्तव्य /भावना/गज़ल़ (साहिल/सरस)

       कर्तव्य

बड़े बुजुर्गों ने सिखाया,
गुरुओं ने भी याद कराया,
कठिन डगर पर भटक न जाना
अपने कर्तव्यों को निभाना | 

सदा प्रज्जवलित कर्मों से,
आदर्शों  के मर्मो  से,
सत्य सनातन धर्मो से,
अपने कर्तव्यों को निभाना | 

सदा प्रेम से  जीते जाना,
सुख- दुख तो है आना जाना,
आशा का ही  दीप जलाना,
अपने कर्तव्यों को निभाना |

©  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

        गज़ल
1222 1222 1222

हवाओं ने कहा है ये घुटन कैसी|
कटे उस पेंड़ से पूछो चुभन कैसी||

ख़ता थी उन ख़तो की जो लिखे तुमने|
जवाबी ख़त जलाने में जलन कैसी||

समझ इतनी कि खुद को नासमझ कहती|
मिलन की आग में जलती अगन कैसी||

नहाना झील में उसका क़यामत था|
नज़र में हुस्न की मदिरा मगन कैसी||

कमल की उस कली में जब भरे खुशबू |
महकती फिर जवानी आदतन कैसी||

सरस की प्यास कोई आ बढ़ा जाए|
चली है आज देखो तो पवन कैसी||

🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

🙏🍹👫💏❤🍦💐🌺🍫🎂🥧

साथ - साथ साधना के
सात हुए वर्ष हैं|
प्रीत भरी भावना का
हर्ष ही हर्ष है|

संग संग हम चले,
मधुर रंग रच गए,
सब दुख दर्द तो,
स्नेह में बह गए|

दिल के अरमान सब,
पूरे भी हो रहे|
जोड़ी कमाल है,
जग वाले कह रहे|

साहिल भी सागर से,
प्रतिपल दुआ करे|
भावना प्रवीन की,
हर जनम हुआ करे|

डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
        इलाहाबाद

  
     🥧इन्दवज्रा -छंद
शिल्प~समवर्ण, चार चरण,  
प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण 
और अन्त में दो गुरु /११ वर्ण
( 221  221  121  22 )

बातें बनाना  मन चाहता है|
वादे निभाना तन चाहता है||
मेरी कहानी  सब जानते हैं|
तारा सुहानी सुख मानते हैं||

बंशी वही  कारण  ढूंढ़ती हैं|
धारा सही  तारन  ढूंढ़ती हैं||
प्रेमी  पुराना  सुर साधता है|
साथी लुभानी लय बाँधता है||

डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

    🌹   मुक्तक
बहर-212, 212 , 212 ,212

साथ तेरा जनम भर निभाता रहा,
प्यार के भाव से गीत गाता रहा|

जिन्दगी संग में यूँ ही' कटती रही,
प्रीत की  बात को गुनगुनाता रहा| 

नासमझ मैं रहा शक्ल पर मर गया,
प्रीत को रीत उसने बताया मुझे| 

खेल ऐसा हुआ साहिल फँस  गया,
मीत को जीत मैं तो समझता रहा|

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
             इलाहाबाद उ० प्र०

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