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तपन (साहिल)

        तपन

तपन न बढ़ाओ सजन,
जेठ  की  दुपहरी में,
अगन न लगाओ बलम,
जल्दी आओ सहरी में|

रोज रोज याद तेरी,
मुझको सताती है,
सूरज की गर्मी सी,
बढ़ती ही जाती है|

रात के  सुकून  में,
मिलन याद आता है,
सुबह पुनः विरहा में,
सूरज चढ़ जाता है|

तन की तपन को,
मैं सह तो लेती हूँ,
रूह की तपन तो,
सह भी न पाती हूँ|

होती  न  रात  तो,
ये दिन भी न होता,
मिलकर सनम तू,
दूर  यूँ  न   होता|

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

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