गज़ल़ (साहिल) इंतहा हो गयी

212  212   212   212

       🌹  गज़ल़  🌹

भागते - भागते  इंतहा हो गयी|
देखते देखते वो जुदा  हो  गयी|

सोचता हूँ उसी की वफा ही मिले|
चाँदनी चाहतों पे  फिद़ा हो  गयी|

माँगता हूँ खुदा से उसे रात दिन|
मन्नतों से शिला भी बला हो गयी|

कामिनी  तू बनी  रागिनी तू बनी|
जिन्दगी की रवानी सजा हो गयी|
      
रात अब थम गयी  दिलरुबा आ गयी|
संग साहिल जवानी  जँवा  हो गयी|

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

प्रेम प्यार की भाषा लिखकर,
नैना स्नेह बढ़ाते हैं|

मधुर मधुर सी आशा लिखकर,
प्रीतम प्रीत पढ़ाते हैं|

प्रियतम तेरे  अरज  सुनेगें,
जल्दी राह चुनेगें|

हृदय मीत की बात समझकर,
तब तक राह तकेगें|

डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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