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मुक्तक 'साहिल'

               मुक्तक
बहर-212, 212 , 212 ,212

*साथ तेरा जनम भर निभाता रहा,*
*प्यार के भाव से गीत गाता रहा|*

*जिन्दगी संग में यूँ ही' कटती रही,*
*प्रीत की बात को गुनगुनाता रहा|*

*नासमझ मैं रहा शक्ल पर मर गया,*
*प्रीत को रीत उसने बताया मुझे|*

*खेल ऐसा हुआ साहिल फँस  गया,*
*मीत को जीत मैं तो समझता रहा|*

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
             इलाहाबाद उ० प्र०

  
  करुणा
1222×4

बिछड़के यूँ मिरा दिलबर चला जब दूर जाता है|

तड़पता छोड़ जाता और हो मजबूर जाता है||

दिलों से फिर वही करुणा निकलती आग बनकरके|

कहूँ क्या हाल मैं दिल का लिए वो नूर जाता है||

         🌷साहिल

   १२२२×४

दिलों की हलचलें समझो ज़रा तुम प्यार तो कर लो,
बढ़ी है धड़कने सुन लो, जरा इजहार तो कर लो,   
वही अब  बन गई है जिन्दगी  की हमसफर मेरी,
फसाने  प्रेम  के  मेरे  सही  स्वीकार  तो कर लो|

          ❤ साहिल 🙏 

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