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आंदोलन
बस कोशिश में लगा था कि दो रोटी का जुगाड़ हो जाए, जो रास्ता समाज रूपी नदी ने दिखाया, बस उसी में बहता हुआ, गोते लगाता हुआ, नौकरी की तलाश में भटक रहा था, परिवार की जुगत अलग, लड़का कुछ तो कमा लें, तब गले में घण्टी बाँधी जाए, इसी भागदौड़ में 8 साल बीत गए, पता भी न चला, जैसे मैं बचपन से पढ़ने के बाद भी 8 साल और भटका, तो भी जीविका न मिल पायी, ऐसी शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाने को मन करता है|
बन्द कर देना चाहिए ये कुकुरमुत्ते से फैल रहे विद्यालय, जो युवा से फीस के रूप में मोटी राशि तो लेते हैं परन्तु नौकरी नहीं दे सकते|
वैचारिक क्रान्ति की जरुरत है,
आंदोलन की जरुरत है, जिसके लिए एकजुट होना जरुरी है, अनेकों में एकता और समायोजन कुछ शैक्षिक और सामाजिक क्रांति ला सकता है, युवा एवं बेरोजगारों का भला हो सकता है, तो साथियों आइए हम सब अन्याय और स्वार्थपरता से भरी हुई नीतियों का विरोध करें, मिल - जुल कर आंदोलन करे|
संघे शक्ति कलियुगे|
जय हिन्द जय भारत
🙏धन्यवाद
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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