डॉ० सर्वेशानन्द सर्वेश जी की गज़ल़


  खेल
दिनांक-०२-०४-२०१८
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खुद हसें, सबको हसायें, जिन्दगी के खेल में ।
रंजिशें-गम भूल जायें, जिन्दगी  के  खेल  में ।।

सबका है अपना तरीका, मान भी, अभिमान भी ।
क्यूँ किसी को आज़माएँ ? जिन्दगी के खेल में ।।

ऐसा ना हो रूठ जाये,  कोई  हमसे  बेवज़ह ।
वक्त पर उनको मनायें, जिन्दगी  के  खेल  में  ।।

खेल जब तक चल रहा है, कौन छोटा या बड़ा ?
कौन पत्ता काम आये ? जिन्दगी  के  खेल  में ।।

चाल मोहरों की बदल देती है पल में  जीत  को ।
कब वो बाजी हार जायें ? जिन्दगी के  खेल  में ।।

जिसमें हो परपीर के गज़लों की खोई बहर भी ।
गीत  ऐसा  गुनगुनायें,  जिन्दगी  के  खेल  में  ।।

हर खिलाड़ी पर नज़र, रखता तो बस "सर्वेश" है !
फैसला वो कब सुनाये ? जिन्दगी के  खेल  में ।।
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डॉ. सर्वेशानन्द "सर्वेश"
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