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सरस जी के मुक्तक

विषय~कारण
विधा~मुक्तक

तुम  धीरजधारी  धारण  हो|
तुम कारण और निवारण हो||
त्रिभुवन गूँजती गूँज तुम्हारी|
तुम  शब्दों  के  उच्चारण हो||

भव  वैतरणी  तारण तुम हो|
धीरज धरती धारण तुम हो ||
हरियाली  है  गंधिल   तुमसे|
सघन कृत्य के कारण तुम हो||

तुम कालचक्र  के  कालक हो|
तुम  ज़रा जवानी  बालक हो||
तुम चालक बालक प्रतिपालक|
तुम  कारणगाड़ी  चालक  हो||

© दिलीप कुमार पाठक "सरस" 

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                     मुक्तक

नीव का पत्थर बनना सबके सब की बात नहीं |
असि धारों पर चलना सबके सब की बात नहीं |
दुख की आग  खौलती सुख  की गरम  चासनी|
दूजे मुख मिठास पगना सबके  बस की बात नहीं ||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस" 

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