विषय~कारण
विधा~मुक्तक
तुम धीरजधारी धारण हो|
तुम कारण और निवारण हो||
त्रिभुवन गूँजती गूँज तुम्हारी|
तुम शब्दों के उच्चारण हो||
भव वैतरणी तारण तुम हो|
धीरज धरती धारण तुम हो ||
हरियाली है गंधिल तुमसे|
सघन कृत्य के कारण तुम हो||
तुम कालचक्र के कालक हो|
तुम ज़रा जवानी बालक हो||
तुम चालक बालक प्रतिपालक|
तुम कारणगाड़ी चालक हो||
© दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
मुक्तक
नीव का पत्थर बनना सबके सब की बात नहीं |
असि धारों पर चलना सबके सब की बात नहीं |
दुख की आग खौलती सुख की गरम चासनी|
दूजे मुख मिठास पगना सबके बस की बात नहीं ||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
Comments
Post a Comment