♤ रक्ता छंद. ♤
विधान~ [रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 ) 7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
1]
धीर वीर ही बनो|
पीर आन की सुनो|
आन बान देश है|
ज्ञान ही विशेष है||
सोम जी महान है|
छंद ज्ञान शान है||
सीख ले सभी इसे|
बार बार ही घिसे|
2]
नैन तो कुबेर है |
रैन मीत देर है ||
रोक लो समीर हो|
चाँदनी अधीर हो||
नेह चाह ही मिले|
भाव से दया खिले||
प्रात रात हो रमा|
पात पात हो जमा||
मीत हाथ चाहिए|
नाथ साथ चाहिए||
शील को सराहना|
प्रीत में कराहना||
3]
छन्द देख लीजिए
आप देख लीजिए
आपकी कृपा रहे
नेह ये बना रहे|
दृष्टि डाल दीजिए|
भाव सींच दीजिए||
नेक राह हो सदा|
गीत गान हो मुदा||
4]।
सोम देव देव है|
ये महान देव है||
देव के सुरेश है|
शैव जी महेश हैं|
नाम ही सुखेश है|
काटते कलेश हैं||
प्रेम भाव लाइए|
मान मीत पाइए||
श्री हरी सखा कहे|
सोम संग ही रहे||
नीतियाँ समान हो|
रौद रूप भान हो||
5]
आज बात ये सिखो|
रोज रोज ही लिखो||
आन बान छंद है |
हिंद शान चंद है||
छंद चंद रोज हो |
ईश वंद ओज हो||
नेक राह काज हो |
ढ़ोल ताल साज हो||
रोग शोक दूर हो|
प्रीत जीत पूर हो||
भावना सुधीर हो |
लोक हानि पीर हो||
©डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
♤ रक्ता छन्द ♡
विधान~ [रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 ) 7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
लोभ मोह छोड़िए|
क्रोध दंभ तोड़िए||
नेक पंथ जाइए |
सोम गीत गाइए||
ओम नाम जाप हो|
रोम-रोम आप हो||
धूप दीप दान हो|
नीर फूल पान हो||
🙏साहिल
रक्ता छन्द
नैन रैन डार तो |
तू मुझे निहार तो||
प्यार की फुहार हो|
फूल की बहार हो||
चाँदनी चकोर की|
रात बात जोर की||
नेह से पुकार लो|
प्रेम से सँवार लो||
रोशनी मिले हमें|
साथ रंग ही रमें||
रूपवान है वही |
शील गान है सही||
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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