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रात स्वपन आए रघुराई

     छंद~चौपाई
श्रीरामजन्मोत्सव की हार्दिक बधाई के साथ ☘🙏🏻☘
सादर रसास्वादन हेतु~

श्रीराम जी स्वप्न में

रात स्वप्न आये रघुराई|
दुख की कह सब कथा सुनाई||
बोले त्रेता ले अवतारा|
रामराज्य का चित्र उभारा||
सबके नैनन शोभा पाता|
सब की इच्छा फिर आ जाता||
किन्तु आज यह क्या होता है|
अन्तस् मेरा क्यों रोता है||
संघर्षशील मनुवंश हमारा|
भरतदेश है सबसे प्यारा||
आज दशा नहिं जाय बखानी|
नशाखोर हुइ गयी जवानी||
दोषारोपण और दिखावा|
कहाँ गया अपना पहनावा||
साथ कौन अब किसका देता|
छीना झपटी सब कर लेता||
निर्धन निर्बल दीन मलीना|
कठिन बहुत है इनका जीना||
एक वर्ग मध्यम है न्यारा|
असमंजस में सोचत हारा||
है तो सोता सभी सुखों का|
एक सिन्धु अब सभी दुखों का||
घर घर में है खूनी लीला|
होता शब्द प्रहार नुकीला||
नेताओं का राम खिलौना|
राजनीति का खेल घिनौना||
घोर निराशा छेड़ प्रसंगा|
जहाँ तहाँ हैं जब तब दंगा||
धनलोलुप हैं पद में अन्धे|
बहुत घिनौने इनके धन्धे||
अपने कर्मों का फल पाता|
समय चूकि पुनि पछताता||
प्रजातन्त्र में प्रजा दुखारी|
दीन हीन क्यों विवश विचारी||
दूध हीन क्यों शिशु की माता|
कौन धर्म कुल रीति निभाता||
मात पिता की होत न सेवा|
चाहत दोनउ हाथन मेवा||
दूर दूर सब रिश्ते नाते|
कौन हँसाता सभी रुलाते||
रामराज्य जो चाहो आये|
यदि चाहो जो दुख छट जाये||
साथ खड़े सुख-दुख में दीखो|
पहले मिलजुल रहना सीखो||
दुष्ट माथ पर करो प्रहारा|
करो लोभ का शीश उतारा||
एक भक्त ने लंका जारी|
उससे हर पल विपदा हारी||
राम नाम का अधिकारी है|
राम उसी पर वलिहारी है||
है बलशाली और विवेकी|
जग गाता है उसकी नेकी||
रामराज्य है उसकी थाती|
चीर दिखाता अपनी छाती||
पौरुष का है एक शरीरा|
हनुमत मेरा है बलवीरा||
संकेतों में है समझाया|
क्यों तूने दुख ओढ़ बिछाया||

दिलीप कुमार पाठक सरस

हनुमत भक्ति
छंद~मनहरण घनाक्षरी

राम मेरे मन रमे, राम मेरे तन रमे|
रोम रोम पल पल,हुआ मेरे राम का||

राम को जो भजता है, राम को जो पूजता है|
वही मेरे काम का है, वही मेरे काम का||

श्रीराम वाल्मीकि प्यारे , तुलसी के न्यारे राम|
राम नाम प्यारा अति, अवध ललाम का||

राम नाम जपना है, राम नाम रटना है|
एक नाम राम राम, नाम सत्य धाम का||

दिलीप कुमार पाठक सरस

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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