इन्दवज्रा छंद
विधान ~ तगण,तगण,जगण,गुरु गुरु]
(221 ,221, 121, 22)
११ वर्ण,४ चरण, २-२ समतुकांत]
राधा~
नैनों सजाये रसना रटाये|
राधा बुलाये रटना लगाये||
ओ साँवरे मोहन धाय आओ|
आँसू बहें पोछ गले लगाओ||
कृष्ण ~
वंशी सजायी अधरों लगायी|
आयी न तू क्यों धुन वो बजायी||
बैठा रहा मैं यमुना किनारे|
राधा सु राधा हम टेर हारे||
राधा ~
काँटे चुभे पैरन वेदना पी|
दौड़ी सुनी जो धुन मोहना जी||
मेरे कन्हैया सुध भूल भागी|
हाँ चेतना मैं पथ माहिं त्यागी||
कृष्ण ~
रोता रहा हूँ छलकात नैना|
ले नाम राधा पुलकात बैना||
मैं हूँ तुम्हारा तुम हो हमारी|
हो मोहिनी-सी मम प्राण प्यारी||
राधा~
हारी थकी थी सब दर्द खींचा|
आ मोहना ने जब अंक भींचा||
सींचा सदा नेह दुलार बोला|
छायी खुशी नैनन प्यार डोला|
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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