∆ कनक मंजरी छंद ∆
[4 लघु + 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
{1111+211+211+211
211+211+211+2}
विषय~आराधना
यह मति मूढ़ रही प्रभुजी अति,
सीख रहे कर जोड़ यहाँ|
सब धन आप रहे प्रभुजी मम,
आप जहाँ हम साथ वहाँ||
शिशु विनती इतनी सुन लो अब,
छोड़ हमें अब जात कहाँ||
सिर धुनता गुनता किसको नित|
शीश झुका करतार जहाँ||
नयनन आप बसे मम आकर,
मोहन आकर पीर हरौ|
सजकर बैठ गये किन देशन,
होत अँधेर उजास भरौ||
नटखट चंचल है मन मोहन,
पास रहो मत दूर करौ|
चरनन आप बसा अघ लो यह,
हस्तकृपा मम शीश धरौ||
जय जय भोर करे नित मोहन,
नाथ सनाथ सदा करना|
तन मन आप बसे मुरलीधर,
लो निज आप बसा चरना|
पथ नित हेरत टेरत-टेरत,
हार गया दुख आ हरना|
नटवर नागर तारण कारण,
आप बिना दुख है भरना||
अँखियन सूजन रोवत-रोवत,
हे करुणाकर आस लगी|
दरसन नैनन की हिय चाहत,
हे नटनागर प्यास लगी|
लख मनमोहन मोहक रूपक,
चन्द्रकलानि उजास लगी|
धड़कन साँसन नैनन प्रानन
भाखन सूँ अरदास लगी||
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©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
वाह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बहुत ही बेहतरीन सर्वोत्तम उत्कृष्ट छन्द सर्जन है, आ० दिलीप कुमार पाठक'सरस'जी, भक्तिरस से सराबोर उत्कृष्ट श्रृंगार से भगवान मनमोहन बृजनन्दन श्री कृष्ण को शानदार भावों में बाँधने का प्रयास पूर्ण रूप से सफल हुआ है एवं जीवन के विभिन्न कष्टों में ईश्वर को पुकारता आपके ऐसे बेहतरीन छन्द हिऩ्दी भाषा साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करेगें|
ReplyDeleteऐसे ही भावों से सदैव लिखते रहें|
डॉ० राहुल शुक्ल'साहिल' की बधाई स्वीकार करें|
दिलीप भाई कनक मंजरी छन्द में उत्कृष्ट सृजन। हार्दिक बधाई।
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