गीत भ्रान्ति नहीं अनुभूति थी मेरी क्यूं तन्द्रा में सोती है एक दिन मेरे मन मे आया कविता कैसे होती है धुआँ देखी ज्वाला देखी उभयादिक...
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ