Skip to main content

मैं ना होता तो क्या होता ?

🥀🥀  मैं ना होता तो क्या होता ?

विधीय विधान.....

एक बोध कथा के माध्यम से

हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा था -
प्रभो, यदि मैं लंका न जाता, तो मेरे जीवन में बड़ी कमी रह जाती।
विभीषण का घर जब तक मैंने नही देखा था, तब तक मुझे लगता था, कि लंका में भला सन्त कहाँ मिलेंगे -
"लंका निशिचर निकर निवासा"
    इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा"...
"प्रभो, मैं तो समझता था कि सन्त तो भारत में ही होते हैं. लेकिन जब मैं लंका में सीताजी को ढूंढ नहीं सका और विभीषण से भेंट होने पर उन्होंने उपाय बता दिया, तो मैंने सोचा कि अरे, जिन्हें मैं प्रयत्न करके नहीं ढूँढ सका, उन्हें तो इन लंका वाले सन्त ने ही बता दिया. शायद प्रभु ने यही दिखाने के लिए भेजा था कि इस दृश्य को भी देख लो।
और प्रभो, अशोक वाटिका में जिस समय रावण आया और रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि अब मुझे कूदकर इसकी तलवार छीन कर इसका ही सिर काट लेना चाहिए, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मन्दोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर मैं गदगद् हो गया।
ओह, प्रभो, आपने कैसी शिक्षा दी ! यदि मैं कूद पड़ता, तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता ?  बहुधा व्यक्ति को ऐसा ही भ्रम हो जाता है। मुझे भी लगता  कि, यदि मैं न होता, तो सीताजी को कौन बचाता ?
पर आप कितने बड़े कौतुकी हैं ? आपने उन्हें बचाया ही नहीं , बल्कि बचाने का काम रावण की उस पत्नी को ही सौंप दिया, जिसको प्रसन्नता होनी चाहिए कि सीता मरे, तो मेरा भय दूर हो। तो मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। किसी का कोई महत्व नहीं है।
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है, तो मैं समझ गया कि यहाँ तो बड़े सन्त हैं।
मैं आया और यहाँ के सन्त ने देख लिया। पर जब उसने कहा कि वह बन्दर लंका जलायेगा, तो मैं बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नहीं और त्रिजटा कह रही है, तो मैं क्या करूँ ? पर प्रभु, बाद में तो मुझे सब अनुभव हो गया।
" रावण की सभा में इसलिए बँधकर रह गया कि करके तो मैंने देख लिया, अब जरा बँधके देखूं , कि क्या होता है। जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिए चले तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, पर जब विभीषण ने आकर कहा - दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि देखो, मुझे बचाना है, तो प्रभु ने यह उपाय कर दिया।
सीताजी को बचाना है, तो रावण की पत्नी मन्दोदरी को लगा दिया. मुझे बचाना था, तो रावण के भाई को भेज दिया।
प्रभो, आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बन्दर को मारा तो नहीं जायेगा, पर पूँछ में कपड़ा-तेल लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाय, तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली सन्त त्रिजटा की ही बात सच थी। लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी, तेल, कपड़ा लाता, कहाँ आग ढूँढता ! वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा लिया। 
जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिए यह याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है।

हम आप सब तो केवल निमित्त मात्र हैं।

     जय श्री राम।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य