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परमादरणीय छन्दर्षि "शैलेन्द्र खरे 'सोम' जी" को अकिंचन 'भगत' का पगवन्दन
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आज आपके जन्मोत्सव की वर्ष-ग्रंथि पर यह अनगढ़ "शब्द-सुमनों की गंधमाल" समर्पित कर आपका कृपानुरागी होने की आकांक्षा रखता हूँ |
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सुनो कलमवर सोम चरित का, सार बाँध लाता हूँ |
जो जाना समझा है मैंने, वह आज बताता हूँ || ध्रु० ||
भारत को गौरव वह दाता, मध्य प्रदेश सुपावन |
जिला छतरपुर नौगाँवा है, ठौर बड़ी मनभावन ||
वही हुआ था जन्म आपका, सबको बतलाता हूँ...(१)
सुनो कलमवर...
वर्ष अठहत्तर चौदह मई, जन्म आप भू पाये |
शैल इन्द्र सम गुण काया से, जग शैलेन्द्र कहाये ||
सोम नाम धर कविता करते, उत्तम ही पाता हूँ... (२)
सुनो कलमवर...
पिता हुये श्री रामदयाला, माता भइ सुमनलता |
खरे वंश के दिव्य सूर्य का, यही हुआ पूर्ण पता ||
आगे अब परिवार सलौना, जो है जतलाता हूँ...(३)
सुनो कलमवर...
अनुजा राखी खरे आपकी, कोकिल पितु बगिया वै |
सुधि सुनील है अनुज आपके, तारे सब अँखिया वै ||
संयोगिता संगी जीवन की, संबल बतलाता हूँ...(४)
सुनो कलमवर...
दो तनया प्यारी सी आँगन, मृदु कलरव करतीं हैं |
नाम अंशिका अरु आराध्या, हृदय मोद भरतीं हैं ||
यह छोटा परिवार आपका, देख हर्ष पाता हूँ...(५)
सुनो कलमवर...
अब करता हूँ बात आपकी, शिक्षा दीक्षा जाने |
द्वय स्नातकोत्तर शिक्षा स्नातक, शिक्षक विज्ञ महाने ||
शासकीय सेवारत उत्तम, अब गुण बतलाता हूँ...(६)
सुनो कलमवर...
सरसी सहज साधु सुधि ज्ञानी, कृपाकोर भाँतिक हैं |
धीर वीर वय वृद्ध ज्ञान में, विद्वत प्रति पाँतिक हैं ||
जित-इन्द्रिय मृदुभाषी तुमको, सदा सदा पाता हूँ...(७)
सुनो कलमवर...
अब सर्जन की बात करें हम, कलम किये कर धारे |
माँ से प्रेरित रहे आप अरु, माँ के कारज कारे ||
कथा कीर्तन भजन संजोये, धन्य स्वयं पाता हूँ...(८)
सुनो कलमवर...
यूँ ही बढ़ते रहे निरन्तर, श्रुति पुराण कह गाये |
कथा भागवत करने वाले, तव स्वागत हित आये ||
पत्र-पत्रिका में भी छपता, सर्जन तव गाता हूँ...(९)
सुनो कलमवर...
प्रखर पुरोधा लोकगीत के , बुन्देली अपनाये |
बहुतहि गीत लिखे अरु खुद भी, कोकिल कंठे गाये ||
मान मिला सम्मान मिला यूँ, ख्यात तुम्हें पाता हूँ...(१०)
सुनो कलमवर...
मुक्त मीडिया आभासी पर, आकर ऐसे छाये |
पाया गुरुवर पावन पद अरु, शिष्य बहुत तुम पाये ||
स्नेहाशीष आपका पाकर, धन्य हुआ जाता हूँ...(११)
सुनो कलमवर...
अब कुछ दिव्य कृतित्व देख लो, ज्ञात रहा जो कहता |
बुन्देली हि माई शारदा, शिवहि भगति रस बहता ||
चार-चौकडियाँ ख्याति दाती, भजन बहुत पाता हूँ...(१२)
सुनो कलमवर...
समाचार पत्रों में नित ही, रचनाएँ छपतीं हैं |
छपते साझा रहे संकलन, कलम सदा मजतीं हैं ||
इतने सब पर सहज आपको, अब भी मैं पाता हूँ...(१३)
सुनो कलमवर...
भगत भाग्य है प्रबल सुजाना, विज्ञ मिले तुम मुझको |
पगवन्दन करता गुण गाता, नमन करूँ नित तुझको ||
सोम सोम सा ही सुख दाते, मन में मदमाता हूँ...(१४)
सुनो कलमवर...
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© भगत
समरथ केवल एक है, वीर बली बजरंग |
भगत दास का दास है, देखत माया रंग ||
🙏 जय-जय
सब शारदा शीष यह, अरु गुरुवर अवदान |
सदा बढ़न कर होत है, छोटन का कल्यान ||
जय-जय
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