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सोम गुरु जन्मदिन बधाई चौहान जी

गुरु सोम जी के श्री चरणों में कोटि कोटि नमन
वन्दन.. जन्मदिन की कोटि कोटि बधाई

आयी है ये शुभ घड़ी,लेकर खुशी अपार|
तेज पुंज गुरु सोम जी, बन्दौ  बारम्बार||

जब तक पावन ये  धरा,रहे  गंग  में नीर|
चाँद सितारे सूर्य सम,चमकेगे शुचि धीर||

नवल पुंज गुरु सोम जी,वर्णन किया न जाय|
जिनकी  तुलना  है नहीं,अतुलनीय कहलांय||

    शुद्ध गीता छंद

सोम  जी  है  देव  मेरे ,वन्दना  है  बार  बार|
हाँ झुकेगा शीश  मेरा ,है  उन्हीं का  नेह  तार||
चाह मेरी  है  यही  जी ,वो  बनाये  कीर्तिमान|
दिव्य को आशीष दे दो,शिष्य मोहे आप जान|| 

  सुंदरी सवैया
                   
गुरुदेव करूँ विनती सुन लो,
       अँधकार हरौ बस आस यही है|
मम कौन सहायक है जग में
     तुम आन बसौ हिय प्यास यही है||
हट जाय विकार सभी तन से,
      नित ज्योति जले अरदास यही है|
भगवान नहीं सुखधाम नहीं,
        तुम होउँ सहाय उजास यही है|| 
  

  मनहरण घनाक्षरी

घट में सागर भरें,
ज्ञान का उजास करें
ऐसे गुरु सोम जी को
वन्दौ बार बार है |

गुणों की हो खान आप,
सबसे    महान   आप,
छंदों का भी ज्ञान देते,
महिमा अपार है|

कभी नही बुरा माने,
सबको ही निज जाने,
मिलता   रहे  सदैव,
आपका दुलार है||

आपकी चरण धूल,
शिष्य पाये भरपूर,
मेरे   गुरुदेव  करें
भूलों का सुधार है||

  ◆ मुक्तामणि छंद ◆

मात पिता की कीजिये,नित्य प्रात ही सेवा|
गुरु से बढ़कर है नहीं, जग  में  कोई  देवा||
मात-पिता तो जन्म दे, आप ज्ञान को देते|
शीश चरण रख देख लो,सदा शरण में लेते||

  ◆पंकजवाटिका/एकावली छंद◆

     (1)
सोम गुरु नियत छंद सिखावत|
होय अगर त्रुटि  भूल  बतावत||
प्रीत सहित सब दोष मिटावत||
धन्य हमहि बस शीश झुकावत||

मात  पिता गुरु  जानते हर  बात को|
शीश झुकें हर बक्त ही  सुप्रभात को||
धाम यही सुन ध्यान से रज चूम ले|
हो प्रभु भी खुश पूज तू अरु झूम ले||   

        ◆हीर छंद◆

जीवन नित  साधक सम ,पावन  हर गान हो|
सूरज  चमके  हरपल, नित्यहि  पहचान  हो||
शारद वर देय अभय, मात  पितु  अशीष दे|
चाहत हिय पूर्ण सबहि,पूज्यति गुरु  रीस दे||

◆मनोज्ञा छंद◆

सुमिर सोम जी को|
ड़र नहीं किसी को||
परम   पूज्य   मेरे|
तम    हरै    घनेरे||

सब करो सवेरा|
तम नहीं घनेरा||
जय सदा रहेगी|
प्रखरता बहेगी||

सरल ज्ञान देगे|
शरण राख लेगे||
झुकत शीश मेरा|
चरण में बसेरा||

जितेन्द्र चौहान

◆धार छंद◆

आओं सोम|
दे दो व्योम||
          नाऊँ  शीश|
          दो आशीष||

◆धुनी छंद◆

सोम गुरु मानता|
ईश सम जानता||
ज्ञान सब जानते|
शिष्य मुझ मानते||

जितेन्द्र चौहान

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