कहानी संग्रह - आधा इश्क
कहानीकार - अमृत राज
प्रकाशन - अयन प्रकाशन
मूल्य - ३०० रु.
पृष्ठ - १४२
युवा रचनाकार Amrit Raj का कहानी संग्रह
' आधा इश्क ' की चर्चा सुनकर पढ़ने को उत्सुक हो उठी। शीर्षक ही इतना उत्सुकता जगाने वाला था। ये आधा इश्क क्या है ? जानने को मन उतावला हो उठा।चाय के प्याले के साथ सोचा एक कहानी का जायजा लिया जाए। बाकी फुर्सत मिलने पर पढूँगी।
भूमिका में लेखक कहता है कि आधा इश्क से तातपर्य यह नही कि इश्क अधूरा है, इश्क अधूरा हो भी नही सकता। आधा हो सकता है, पौना हो सकता है, पर यह एक मुकम्मल अहसास है। पढ़ते ही लेखक के विचार ने दिल को छू लिया। कुल सत्रह कहानियों के गुल से सजे गुलदस्ते ने अपनी खुशबू से मन मोह लिया। एक एक कहानी प्रेम के सुकोमल अहसासों को जीती हुई, मानव मन की अतल गहराइयों में डुबोती चली गईं। सोचा था एक ही कहानी पढूँगी, पर पढ़ना शुरू किया तो रख ही नही पाई। एक बैठक में पढ़कर ही रखी। मन इतना भावुक हो उठा कि बयान नही कर सकती। पूरी पुस्तक एक भावभीनी कविता ही है।
पहली कहानी ' रंगसाज ' एक शानदार कहानी है। एक किशोर पेंटर और हवेली में रहने वाली विवाहोत्सुक लड़की की संवेदनशील कहानी। सबसे अलहदा किस्म की ,जो मंत्रमुग्ध कर देती है।
फिर है कूड़ादान, गली के बदनाम घर की वेश्या और एक मासूम लड़का। कैसे भावनाएं परवान चढ़ती हैं, कितना कोमल अहसास जागता है, बहुत ही मार्मिक कहानी।
एक काले अदर्शनिय लड़के की भावनाएं, उसकी कुंठा, स्वयम के लिए सम्मान व प्रेम पाने की चाह, उसका त्याग, सब मिलकर मार्मिक भाव उतपन्न करते हैं कहानी कल्लू में।
कहकशां में इश्क की गिरफ्त में आये शहज़ादे दारुण कहानी , इंसानियत में धर्मान्धता में फंसे मनुष्य की हैवानियत, काव्या में एक मासूम लड़की की मृत्यु के बाद तफ्तीश करने वाले अधिकारी का डायरी पढ़कर विचलित हो जाना और अंजाम की ओर जाना, प्लास्टिक के फूल में बड़ी उम्र के पुरुष की कमसिन पत्नी की कामनाएं और अंत सब कुछ बहुत मार्मिक है।
एक विवाहित स्त्री की अपने पुराने प्रेमी से अचानक हुई मुलाकात, भावावेग में व्याकुलता, और फिर दायरे टूटने से पहले सम्हल जाने की दास्तान है ' कोई ज़िंदा है क्या '। क़िरदार, मायने ऊटपटांग, ग़ुलाम, मोड़, एक लोटा पानी और अंतिम कहानी ' आखरी मुलाकात ' सभी एक से एक लाजवाब नगीने हैं इस पिटारे में।
न जाने कितनी बार भावुक होकर आँसू बहाए, कभी प्रेम की सुगंध में डूबकर रह गई। किसी विचित्र भावना है प्रेम की। कैसे सुध भुला देता है ये अहसास। व्यक्ति पागल हो उठता है, जान की परवाह नही करता। कभी हँसता है तो कभी रोता है। सच है, प्रेम के रंग हज़ार।
अगर आपने भी कभी प्रेम किया है, उसके अस्तित्व पर विश्वास करते हैं, तो एक बार अवश्य पढ़कर देखें ' आधा इश्क़ '। अगर न इश्क़ कर बैठें इस संग्रह से तो कहिएगा।
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ज्योत्स्ना सिंह राजावत
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