भगत जी के दोहे

समरथ केवल एक है, वीर बली बजरंग |
भगत दास का दास है, देखत माया रंग ||

🙏 जय-जय

कण तृण में गिनती रही, कहाँ शैल सा रूप |
अनुज रहें हम आपके, आप सुधि गुण भूप ||
🙏 जय-जय

सदा भगत तव साथ है, विप्र गुणन आगार |
कारक  है  कल्याण  के, जानत यह संसार ||

🙏 जय-जय

ज्ञानी कब कहता फिरे, भरा  ज्ञान  आगार |
मूढ़ भगत जानत कहाँ, सब शारद आधार ||

प्रिय प्रीत की रीत यह, बंधन  स्नेहक  सार |
होहिं बेगिअहि आपके, मनरथ सब साकार ||

रहा अकिंचन नेह का, सदा पिपासित लोक |
आप  सरीखे  प्रेम  से, करते   रहे   अशोक ||

शुक्ल   वर्ग   राहुल    रहे, साहिल सदा प्रमाण |
भगत भाग निश्चित प्रबल, होवहिं अब कल्याण ||

© भगत

आज सरस छलकत रहे, भगत मूढ़ पर नेह |
कृपाकोर   यूँ   ही  रहे, बालक पर तव स्नेह ||


पुण्य प्रगट किसके भये, कौन सका यह जान |
आप  समझते  आपके, भगत रहा निज मान ||

सरस सरल साहिल सभी, भगत सुगौरव आज |
सदा   बढ़े   उन्नति  प्रपथ, धारे   शीश.  समाज ||
                  भगत

साहिल सो  खोजत  यहाँ, जग  में  लोग  तमाम |
भगत निकट सहजहि रहे, साहिल सुधि अविराम ||

        भगत
     जय-जय

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