हरिहरण छंद
शिल्प~
[8,8,8,8 प्रत्येक चरण की हर यति पर
लघु लघु समतुकांत सम वर्ण]
शारदे माँ प्यार कर ,
दया से निहार कर,
वीणा की झंकार कर,काव्य में सुधार कर।
विनती स्वीकार कर,
अब न अबार कर,
गल्तियां बिसार कर,दोष तार तार कर।।
दया दृष्टि डाल कर,
शारदे कमाल कर,
चरणों में पालकर,जीवन निहाल कर।
विपदा को टाल कर,
मन खुशहाल कर,
सोम को सम्हाल कर,आँचल को ढालकर।।
~ शैलेन्द्र खरे "सोम
हरिहरण घनाक्षरी
विधान- 8 8 8 8 वर्ण पर यति ,चरणान्त लघु लघु प्रति चरण नियत, चार चरण समतुकान्त ।
दीनता निहारि नाथ ,
गहे प्रेम पाय हाथ ।
प्रीत मान रहे साथ,
सबसे दयालु प्रभु ।।
कोटिन को सीख देत,
राजन को भीख देत ।
जीवन सुधार देत,
अपने कृपाल प्रभु।।
दीनन सॅवार कर ,
पापिन सुधार कर ।
भक्तन को तार कर ,
करते निहाल प्रभु।।
नेह से बुलावे कोई,
टेर जो लगावे कोई ।
विपति सतावे कोई,
बनते हैं ढाल प्रभु ।।
बिजेन्द्र सिंह सरल
हरिहरण छंद
शिल्प~
[8,8,8,8 प्रत्येक चरण की हर यति पर
लघु लघु समतुकांत सम वर्ण]
मात का दुलार तन,
प्रभु उपहार तन ।
भूमि का है भार तन,
कर उपकार तन ।।
सब धन सार तन,
प्रेमिका का प्यार तन ।
रूप की बहार तन,
प्रेम से सॅवार तन ।।
सबल की शान तन,
सबका निशान तन ।
रोग की है खान तन,
कर ले महान तन ।।
नेह से निहार तन,
प्रीति से उवार तन ।
दीन को निहार तन,
कर ले सुधार तन ।।
बिजेन्द्र सिंह सरल
संजय जी द्वारा प्रदत्त ओंकार नाथ दुखिया के उदाहरण अनुरुप प्रयास......
◆ हरि हरण घनाक्षरी छंद ◆
भजो राम नाम सच।
बने सभी काम सच।
दुख नहीं मिले सच।
बात यह मान सच।।
रोग शोक छूटे सच।
मोह लोभ झूठ सच।
धर्म कर्म सत्य सच।
आत्म तत्त्व जान सच।।
जग है असार सच।
नेह जग सार सच।
अहं करे नाश सच।
कृष्ण गीता ज्ञान सच।।
शिव सच राम सच।
राधे श्याम नाम सच।
माता पिता ज्ञान सच।
जग का विधान सच।।
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कौशल कुमार पाण्डेय"आस"बीसलपुर।
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हरिहरण छंद
शिल्प
( 8 ,8 ,8 ,8 प्रत्येक चरण की हर यति पर- लघु लघु समतुकांत सम वर्ण
सत्य को स्वीकार कर,
कोई उपकार कर,
जीवन निखार कर,
भव से उबार कर,
जीवन से प्यार कर,
सुख दुख टार कर,
जिंदगी सँवार कर,
कुछ ऐसा काम कर।
इश्वर का ध्यान कर,
भक्ती रस पान कर,
हरी गुण गान कर,
मीत प्रभु मान कर
वेद वाणी जान कर,
गुणों का बखान कर,
एकता प्रबल कर,
जिंदगी सबल कर।
इन्दू शर्मा
तिनसुकिया असम
हरिहरण छंद
शिल्प~
[8,8,8,8 प्रत्येक चरण की हर यति पर
लघु लघु समतुकांत सम वर्ण]
सीय स्वयंवर
स्वयंवर हर्षावन,
सीय पूज्य प्रभावन,
दोऊ भ्राता दिखावन,
जानकी जू लजावन।
जोड़ी प्रभु बनावन,
लगे सम सुधावन,
दृश्य हिय प्रियावन,
भक्त आस जगावन।
शिव धनु उठावन,
प्रत्यंचा को चढ़ावन,
जगत को सिखावन,
श्री राम आगें आवन।
राम सिया सुहावन,
लगते मनभावन,
करते जन पावन,
त्रय लोक लुभावन ।।
छाया सक्सेना ' प्रभु'
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प- 8,8,8,8 यति, यति अंत लघु लघु नियत।
चार चरण समतुकांत।
दुनिया बिसार कर,
वंदन-हजार कर,
आरती उतार कर,भारती से प्यार कर।
बैठ न यूं हार कर,
आज ये विचार कर,
शत्रु को निहार कर,वीर तू हुंकार कर।।
चुनौती स्वीकार कर,
उठ चमत्कार कर,
घोर ललकार कर, वार बार-बार कर।
जोश हिये धार कर,
वीर तू प्रहार कर,
युद्ध आर पार कर,दुश्मनों को मार कर।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
हरिहरण घनाक्षरी
(प्रति चरण ८,८,८,८ वर्ण, हर यति पर लघु+लघु समतुकान्त सम वर्ण)
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
प्राण निज पूत कर,
मातृभूमि दूत कर,
मन से प्रसूत कर,
बली हित हूत कर |
देश हित मान कर,
मन अभिमान कर,
चित्त का वितान कर,
सब कुछ दान कर |
निज बाहु बल कर,
मन को सबल कर,
पगबाधा हल कर,
मति को विमल कर |
हरि कर थाम कर,
पूत यही काम कर,
निबलता वाम कर,
मार मर नाम कर ||
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
©भगत
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प- 8,8,8,8 यति, यति अंत लघु लघु नियत।
चार चरण समतुकांत।
भवानी हुंकार भर,
फिर अवतार धर,
पाप तार तार कर,
धर्म का संचार कर।।
भाला धारदार कर,
अब चमत्कार कर,
असुरों पे वार कर,
भारती उद्धार कर।।
कहतें पुकार कर,
भक्त हम हार कर,
दिव्यता प्रसार कर,
लाल होनहार कर।।
वंदन स्वीकार कर,
अब उपकार कर,
मोक्षमुक्ति द्वार पर,
जीवन का सार कर।।
ऋतु गोयल सरगम
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प- 8,8,8,8 यति, यति अंत लघु लघु नियत।
चार चरण समतुकांत।
कभी आप हँसकर,हाथ थाम कसकर।
आये साथ चलकर,रूप रस भरकर।।
टूट गये बंध सब,प्रेम अनुबंध अब।
पूँछ रहे मिले कब,शब्द गये घर-कर।।
टीस उठी रह-रह,और नहीं अब कह,
गया विष-सम सह,मौन मन धरकर।।
होंठों आह चढ़कर,नैन अश्रु बढ़कर।
प्रेमफंद पड़कर,जिएँ मर-मरकर।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
★ हरिहरण घनाक्षरी ★
(प्रति चरण ८,८,८,८ वर्ण, हर यति पर लघु+लघु समतुकान्त सम वर्ण)
💐💐💐💐💐💐💐💐
निज दोष हर कर,
क्रोध लोभ जर कर,
जीवन सँवर कर,
भक्ति भाव भर कर।
ज्ञान ध्यान गढ़ कर,
भक्ति पथ बढ़ कर,
सुर ताल मढ़ कर,
धर्म वेद पढ़ कर।
नेह भाव मान कर,
जन अभिमान कर,
तन मन दान कर,
गुरु पहचान कर।
प्रेम पथ काम कर,
जग हित नाम कर,
कर्म अविराम कर,
सनातन धाम कर।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प-८८८८यति,अंत लघु लघु नियत
चार चरणसमतुकांत
तार तार रिश्ते हुए
कभी नहीं गए छुए
वही हुए धुंए धुएं ,मनुजता शर्महत
कैसा बकवास यह
नहीं है उछाह हह
वेदना उठी असह, जग लगे हैं असत
भूल गए धर्म कर्म
लुभावनी लगे चर्म
कुछ नहीं शास्त्र मर्म,नीचता बढीअपत
धैर्य धरा धार कर
बैठ मत हार कर
अच्युत पुकार कर ,रेहर दुःख हरत
जागेश्वर प्रसाद''निर्मल''
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प- 8,8,8,8 यति, यति अंत लघु लघु नियत।
चार चरण समतुकांत
पाक मत रार कर,बार-बार बार कर।
बार बार हार कर,मत शर्मसार कर।
शर्म को उतार कर,मर्म तार तार कर,
मत हद पार कर,आँखें अब चार कर।
भारत दहाड़ कर,पाक को पछाड़ कर।
आँखें फोड़फाड़ कर,हाड़ तोड़ताड़ कर।।
प्रलय की बाढ़कर,जड़ से उखाड़ कर।
शत्रु चीर-फाड़कर,पाक में ही गाड़कर।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प- ८, ८, ८, ८, प्रत्येक यति दो निश्चित लघु। चार चरण समतुकांत।
मिटाना विवाद अब
बन प्रहलाद अब
हो नही संवाद अब
करो बरबाद अब।
युद्ध का हो नाद अब
खड़ें हैं फौलाद अब
पाक बने याद अब
भारत आजाद अब॥
प्यार व आह्लाद अब
तोड़ता मर्याद अब
हमारी औलाद अब
बनी है उस्ताद अब।
ताकती उन्माद अब
क्रोध व विवाद अब
देश जायदाद अब
रचो राष्ट्रवाद अब॥
नमन जैन अद्वितीय
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