मोहब्बत


“हर दिन अपनी जिन्दगी को एक नया ख्वाब तो दो,
चाहे पूरा ना हो पर काम को अंजाम तो दो।
एक दिन पूरे हो जायेंगे सारे ख्वाब तुम्हारे,
कर्म युद्ध को चलो आज मुकाम तो दो।

  
बेवजह यूँ हर घड़ी मुस्कुराना,
बेवजह किसी को कभी न सताना,
ईश्क में दिवाने को कोई पागल न समझे,
जिसको पा सको बस उसी से दिल लगाना।

   
स्वागत में फूल कोई सजाये तो;
मोहब्बत से कोई खिलाये तो;
मैं तो आ जाऊँ दौड़ के;
प्रेम से  कोई   बुलाये तो।

    
उनकी यादों में हम पत्ते जैसे सूख गये,
आये ना फिर वो कितने बसन्त ही बीत गये।

 
केवल रूठने वाले लोग तो फिर आ जाते है।
उनके दिल से पूछिये जिन्हें बेवफा मिल जाते हैं।

हम उनसे दूर नही रह पाते,
बिन सनम के हम जी नहीं पाते...
काश वो हर साँसों में बसे होते,
हम साँस लेते और वो याद आते।
      

चाँद से भी ज्यादा तू हसीन लगी।
तू ऊपर से नीचे तक नमकीन लगी।
  

जो अक्सर टूट जाते हैं,
वो  कोई वादे  नही।
जो पूरे नही हो पाते,
वो सच्चे इरादे नही।
  

अंजान से पहचान बनाना पड़ता है,
दिल की बात को जताना  पड़ता है,
मोहब्बत की शुरूआत  है इजहार,
इजहार को मुकाम पर पहुँचाना पड़ता है।

    साहिल

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