जब जागो तभी सवेरा
भारत वर्ष आशाओं की पावन-भूमि है | विकटतम परिस्थिति में भी यहाँ सत्पथ पर अडिग रहने के अनगिनत उदाहरण विश्व पटल पर हमारे गौरव को व्याख्यायित करते हैं |
जीवन एक संघर्ष है और संघर्ष को उन्नति का मूल कहा गया है | हमें हमेशा सफलता ही मिले ; यह अनिवार्य तो नहीं और अनिवार्य होना भी नहीं चाहिये, क्योंकि समस्थितियाँ जीवन को नीरस बना देती हैं |
इसीलिये हमारे पूर्वजों ने सुख-दु:ख को विस्तृत परिभाषित किया है | सुख सात मानें गये हैं~
😊 पहला सुख निरोगी काया
😊 दूजा सुख घर में माया
😊 तीजा सुख सुलक्षणा नारी(नर भी)
😊 चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी
😊 पंचम सुख स्वदेश में बासा
😊 छठवाँ सुख राज में पासा
😊 साँतव सुख संतोषी मन
😊 ऐसा हो तो धन्य है जीवन 😊
और दु:ख मात्र तीन~
😫 आधिदैविक
😫 आधिदैविक
😫 आधिभौतिक
आज की आपाधापी भरे जीवन में हमने संघर्ष कुछ इतने बढ़ा लिये हैं कि *सात सुख तो कहीं मिल ही नहीं पा रहे और तीन दुखों को हमने असंख्य रूपों में परिणत कर अपने आपको नाकारा बना लिया है |*
ऐसी दशा में संबंल बनते है हमारे वेद वाक्य (अनमोल वचन) , जो हमें हारने नहीं देते और जीत की ओर निरन्तर अग्रसर किये देते हैं | ऐसे एक नहीं अनगिनत सू्क्त\वाक्य\दोहे\कहावतें व मुहावरे हैं ; इनके अलावा और भी न जाने कितने प्रकार की प्रेरणायें हमारे इर्द-गिर्द मौजूद रहतीं हैं, जो हमें जीवट प्रदान कर निराशा से बचातीं हैं |
ऐसा ही एक अमृत वाक्य है~जब जागो तभी सवेरा।
इस वाक्य में नीहित ऊर्जा हमें न केवल फर्श से अर्श की ओर ले जाती है, बल्कि हमारी निराशा, हताशा, निरुत्साहादि को तत्काल ही अपहरित कर देती है |
यह वाक्य हमें हर पल, हर हाल में आशान्वित रहने की प्रेरणा देता है | इससे हम सीखते हैं कि चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो, हम कितनी भी बार क्यों न हार गये हों, हम किसी अपेक्षित कार्य में कितने ही विलम्बित क्यों न हो गये हों, हमारा कितना ही नुकसान क्यों न गया हो, हमें आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए |
कहना यह भजत जय
अब से, इसी पल से ही हमें अपने अपने मन की विद्रुपताओं को जन्म के साथ ही नष्ट कर देना है, फलित न होने देना है | कहते हैं सकारात्मक भाव ही वास्तविक सुखों में परिणत होते हैं और नकारात्मक भाव दु:ख बनकर जीवन को कलुषित करते हैं |
अत: अब से इसे ध्येय वाक्य ही बना लिया जाये तो कैसा रहे 😊 |
तो जोर से बोलिये ~ जब जागों तभी सवेरा |
जय-जय
जब जागो तभी सवेरा
🍁🍁🍁
दु:ख मात्र तीन~
😫 आधिदैविक
😫 आधिदैहिक
😫 आधिभौतिक
अद्भुत भावों से अद्वितीय ज्ञान का सारांश प्रस्तुत कर आ• भगत सहिष्णु गुरुवर ने साहित्य संगम संस्थान को गौरवान्वित और हमें हर्षित किया है।
ज्ञान के भण्डार है भगत गुरु,
जब जागो तभी सवेरा हो शुरु |
सात सुखों का ज्ञान हुआ,
संगम का अभिमान हुआ,
श्रेष्ठ सृजन से हुआ सवेरा,
सबके मन में भान हुआ।
भगत का मैं भक्त हुआ,
आज समर्पित रक्त हुआ,
लेखन प्रतिभा है अद्भुत,
अब जगाने का वक्त हुआ।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल की ओर से आॅ• भगत जी को शानदार सृजन के लिए कोटि कोटि बधाई
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