◆हलमुखी छंद◆
विधान ~ [रगण नगण सगण]
(212 111 112 )
9 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत]
छंद
छंद आज सब रचिये।
नेह मोद मन नचिये।।
भाव प्रेम मन कहिये।
नंद धाम सब रहिये।।
लोभ क्षोभ दुख हरिये।
नेक राह पग धरिये।।
गीत गान गुन भजिये।
क्रोध काम सब तजिये।।
तीन संधि रस कविता ।
देत ओज सुख सविता।।
संग संग सब बढ़ते ।
नित्य प्रेम पथ गढ़ते।।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
घनमयूर छंद
111 111 211 112 212 1 2
मिलन
नवल मिलन की,मधुवन है तू, मिली जुली।
हर पल मन की, हलचल है तू, नपी तुली।
सतगुण रवि की,विकिरण है तू,घुली मिली।
सरल प्रखर सी,नटखट है तू, धुली खिली।।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
♢गाथ छंद ♢
विधान ~[ रगण सगण गुरु गुरु] ( 212 112 2 2)
8 वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत]
श्रीराम स्वागत
राम जी जब आएंगे।
प्रेम दीप जलाएंगे।।
गीत भी हम गाएंगे।
ताल खूब बजाएंगें।।
सोम साज सजाएंगें।
रोशनी हम लाएंगें।।
नित्य होम करायेगें।
भाव भी बिखरायेगें।।
धूप दीप चढ़ायेगें।
धाम को महकायेगें।
दर्श से तन झूमेगा।
देव के पग चूमेगा।।
✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
♤मोटनक छंद♤
विधान~
[तगण जगण जगण+लघु गुरु]
( 221 121 121 12
[11वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत]
चन्दन
ये चंदन लागत सुंदर है।
माथे पर शीतल अंदर है।
मानो शिव को वह शंकर है।
माया जग का तम कंकर है।
आओ सुखपूरित काम करें।
सच्चे मन से प्रभु धाम भरें।।
टीका महके जब भाल लगें।
बाजे डमरू सुर ताल जगें।।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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