मैं तुम मिलकर हम हो जाते,
अगर अहं को छोड़ के आते।
अपनी बातें कुछ कह पाते,
कुछ अपने मन की सुन जाते ।।
काश समझ पाते हम दोनों ,
जीवन के हर पल मुस्काते ।।
खुशियों को दामन में भरते ,
दर्द दिलों के कम हो जाते ।
मैं तुम मिलकर हम हो जाते ।।
तनहाई भी कम हो जाती ,
यौवन की कलिका मुस्काती ।
बिना कहे मन सब कुछ समझे ,
सारी खुशियाँ घर भर लाती ।।
जीवन में फिर दीप नेह के ,
मिलकर के हम रोज जलाते ।
मैं तुम मिलकर हम हो जाते ।।
डॉ अरुण श्रीवास्तव "अर्णव"
🌷🌷🌷सुप्रभात🌷🌷🌷
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