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Ek Pristha Mera bhi

🌹🌹 *एक पृष्ठ मेरा भी*🌹🌹

            भूमिका

गौ, गंगा, गीता और गायत्री के अनुकरणीय अनुपालन और वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं• श्री राम शर्मा आचार्य के विचारों से अभिप्रेरित सत्प्रवृतियों के सम्वर्द्धन एवं दुष्प्रवृतियों के उन्मूलन व समाज में वैचारिक क्रान्ति के उद्देश्य हेतु सत् साहित्य की साधना हेतु निर्मित  *साहित्य संगम*  के प्रथम कदम के रूप में साझा पुस्तक  *एक पृष्ठ मेरा भी* का प्रकाशन करते हुए हम अत्यंत हर्षित हैं।

          प्रौढ़, युवा और महिला शक्तियों के विचार रूपी निर्मल गंगा के समान विभिन्न विचारों के संगम से निर्मित *साहित्य संगम* की ऐतिहासिक पुस्तक  *एक पृष्ठ मेरा भी* में बहुत से रंग समाहित है।
गीतों की गंगा भी है, गजलों की संध्या भी है,
कलीयुगी रावण जलता भी है,
स्वागत सबका सत्कार भी है,
माता पिता का प्यार भी है,
गाँव की मधुर पुकार भी है
अभिव्यक्ति की आजादी में
मातृभाषा का आगाज भी है,
राष्ट्र भक्ति देश प्रेम भी है,
सेहत का आवाहन भी है।
कवि की उलझन भी है,
युवा का आवाहन भी है,
बेटी की विदाई भी है,
सृजन रस श्रृंगार भी है,
ऋतु चक्र वर्णन भी है,
चाँद पर नर्तन भी है।

     मनोभूमि को सुव्यवस्थित स्वस्थ सतोगुणी सन्तुलित व विचारवान बनाने में साहित्य का बड़ा महत्व है। सामाजिक और धार्मिक विषयों के मन्थन  के बाद यह सुनिश्चित हुआ कि यदि देश के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित मन के अन्तस पटल के विचारों को अलग अलग विषय को सबको समाहित कर लिया जाये तो शायद इस संगम के वैचारिक अभिव्यक्ति पूर्ण मन्थन से सत् साहित्य की साधना दृष्टिगोचर हो।पुस्तक विषय का चुनाव भी वैचारिक मन्थन के बाद किया गया  *एक पृष्ठ मेरा भी*।

*समान मन्त्रः समितिः समानी*
        *समानं मनः सह चित्तमेषाम्।*
*समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः*
        *समानेन वो हविषा जुहोमि।।*
                (ऋग्वेद 10/191/3)

भावार्थ -
सभी मनुष्यों के विचार समान हो, सब संगठित होकर रहें। सबके मन, चित्त तथा यज्ञ कार्य (सत्कार्य) समान हो, सब मिल - जुलकर - एक रूप होकर रहें।
सकल सरल वैचारिक भाव से ओतप्रोत *एक पृष्ठ मेरा भी* के लिए सभी 34 रचनाकारों एवं प्रकाशक मण्डल का सादर धन्यवाद और शुभकामनायें।

          भविष्य में ऐसे ही  सामाजिक पुनरुत्थान  व जागरूकता के लिए विषयगत पुस्तक प्रकाशन की योजना है। आशा है कि साहित्य संगम के सभी साहित्यकारों के हृदय से निकले विभिन्न उद्गारों से रचित  *एक पृष्ठ मेरा भी*  का अध्ययन आपको रोमांचित व झंकृत करेगा।  विचार व सलाह आमंत्रित हैं।

                  
डाॅ• राहुल शुक्ल

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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