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जीवनी श्री राजवीर सिंह

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अपनी संस्कृति और धर्म के बारें में संस्कार बाल्यावस्था से ही किसी किसी बालक में विशेष रूप से उजागर होते दिखते हैं। अपनी भाषा और वैदिक संस्कृति के आचार विचार पर चलने वाले लोग सदा ही श्रेष्ठ कर्म करते हैं और अपने एवं राष्ट्रीय हित की भावना से ही कर्म एवं  धर्म को निभाते हैं।

तरौंदा, कानपुर, उ• प्र• में 1 मार्च सन् उन्नीस सौ छिहत्तर में  माता  श्रीमती विद्यावती एवं  श्री गजराज सिंह  जी के यहाँ जन्में श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी  श्री राज वीर सिंह  जी ने आर्य समाज के माध्यम से वैदिक और योगिक ज्ञान लेकर हिन्दी एवं संस्कृत साहित्य के माध्यम से देश के कलेवर को वैचारिक क्रान्ति के माध्यम से बदलने एवं सत् साहित्य प्रदान करने के लिए बेड़ा उठाया और कई हाथ उनके साथ हो लिए।

            वह दिन दूर नही जब साहित्य संगम नाम से चल रही संस्था में शानदार नेतृत्व क्षमता और स्नेह के बल पर नूतन मुकाम खड़ा होगा और देश को साहित्य की शक्ति का आभास होगा।

साहित्य समाज में विचार क्रान्ति द्वारा विभिन्न सकारात्मक परिवर्तन कर सकता है। वैदिक मंत्रों के अद्भुत एवं शानदार ज्ञान से डी• ए• वी• विद्यालय गुआ, झारखण्ड में शिक्षक पद पर आसीन होकर छात्रों को हिन्दी एवं संस्कृत का विशेष ज्ञान देकर राष्ट्र को गौरवान्वित कर रहे हैं तथा विभिन्न कर्मकाण्ड एवं मंत्रोच्चार द्वारा जन समूह को मंत्र मुग्ध कर देते हैं।

       आदरणीय जी की हजारों कृतियाँ एवं सैकड़ो से अधिक अति उत्तम आलेख, कवितायें, छन्द एवं विभिन्न प्रकार के गद्य समाचार पत्र, पत्र पत्रिकाओं में आदि कई  प्रकार की सामाजिक पुस्तकों में आपकी रचनायें प्रकाशित होती रही है और समाज को आलोकित करती रहती हैं।
आपका काव्यनाम (उपनाम)  मंत्र आप पर सर्वदा सुशोभित होता है।
आपका मंत्रोच्चार और गायन अति उत्तम व सर्वश्रेष्ठ है।

     दो तीन काव्य संकलन आपके जल्द ही प्रकाशित हो रहे हैं। कुछ विशेष रचनायें आपकी  *एक पृष्ठ मेरा भी* पुस्तक में जनवरी 2017 में प्रकाशित हुई।

     ईश्वर परम आदरणीय श्री राज वीर सिंह जी को उच्च सोपान प्रदान करें एवं हम सब उनके सदैव सर्वदा उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
    19/02/2017

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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