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मद्यपान एक विकृति

            💀 मद्यपान एक विकृति 💀

कूड़े के ढेर के पास से लोग गुजरना पसन्द नहीं करते, चरित्रहीन गन्दे व भद्दे व्यवहार वाले लोगों को समाज में हमेशा नापसंद किया जाता है। वो समय दूर नही जब ऐसा व्यवहार मद्यपान करने वालों के साथ भी होगा।  

   
      सभी जीवों में श्रेष्ठ मनुष्य अपनी वैचारिक शक्ति के बल पर सर्वश्रेष्ठ कहलाते हैं। जब से मानव जाति की उत्पत्ति का इतिहास मिलता हैं तभी से मदिरापान, मद्य पान, ध्रूमपान, आदि का भी इतिहास मिलता है, ऐसा क्या विशेष है जो पशु तथा जानवर प्रयोग नही करते और मनुष्य अपने मन व तन को दुरुस्त और उत्प्रेरित करने के लिए मद्य या नशे का प्रयोग करते हैं।

सृष्टि में सभी जीवों की उपयोगिता है परन्तु मनुष्य की उपयोगिता, सहभागिता और उत्तरदायित्व समाज के प्रति सबसे अधिक है। उन सब से परे मनुष्य केवल रोटी के ऊपर के स्वर्ग (धन)को कमाने में लगा है और उससे अपनी विलासिता को बढ़ाता जा रहा है।

         दुख तो यह है कि जो अत्यंत निर्धन है वे भी इस वैश्विक पशुता या वैश्विक विकृति मद्यपान में फँस कर अपना और परिवार का जीवन बर्बाद कर रहा है।

       कौन कहता है की नशा धीरे धीरे मनुष्य को गिरफ्त में ले लेता है और मनुष्य का जीवन खराब कर देता है ये तो केवल मिथक इसलिए है क्योंकि सच्चाई बहुतों को पता ही नही है।

       कुछ बातें रखना चाहता हूँ। एल्कोहल या मदिरा या शराब मनुष्य के शारीरिक तंत्र पर किस प्रकार कार्य करती है। जैसा कि सभी जानते है कि हमारे द्वारा लिया गया किसी भी प्रकार का भोज्य पदार्थ मुखगुहा से होता हुआ आमाशय फिर छोटी आँतों में निकले हुए पाचक रस के माध्यम से पाचन क्रिया द्वारा अंतिम पोषक तत्व बनकर रक्त में अवशोषित हो जाता  है। जल या अन्य तरल पदार्थ सीधे बड़ी आँत में जाकर अवशोषित हो जाते हैं इसीलिए स्वच्छ जल पीने की सलाह दी जाती है, अरे ये क्या पर धरती पर कोई भी जीव मनुष्य को छोड़कर मदिरापान नहीं करता। मदिरा सीधे बड़ी आँत में जाकर खून में अवशोषित हो जाती है, इसीलिए त्वरित उत्प्रेरक का कार्य करती है और मनुष्य के तन मन में नशे और विस्मृति की स्थिति पैदा कर देती है यही विस्मृति विकृति का रुप भी लेती है क्योंकि हमारी आँते और गुर्दे (जहाँ रक्त के छनने का कार्य होता है) ऐसे पदार्थ को पचाने के लिए नही बने। यह खून में जाकर धमनियों और शिराओं के माध्यम से सीधे मस्तिष्क में पहुंच कर सामान्य क्रिया कलाप को बाधित कर मन में वैचारिक विकृति पैदा करती है।

मदिरा या किसी प्रकार का मद्य पान रक्त से मस्तिष्क तक मात्र 30 से 48 मिनट में पहुंच जाता है और अपना कार्य पहले दिन से ही शुरु कर देता है। आदमी को पता तो तब चलता है जब कोई विशेष अंग में दिक्कत महसूस होती है वो चिकित्सक के पास जाकर जाँच कराता है तब तक 50% से  60% अंग खराब हो चुका रहता है।

    इस वैश्विक महामारी और मनुष्य व समाज के शत्रु से दूर रहें शराब एल्कोहल आदि का पान न करें। तम्बाकू न चबायें, ध्रूमपान से भी दूर रहें।
   
मानसिक और शारीरिक हनन को बचाने के लिए मानसिक विकृति को रोकने के लिए मद्यपान पर निषेध अति आवश्यक है एवं इसे रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास करना जरुरी है।
           
          धन्यवाद
   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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