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डमरू घनाक्षरी


विधा◆ डमरू घनाक्षरी ◆

शिल्प~8,8,8,8 लघु वर्ण प्रति चरण
   【बिना मात्रा के प्रति चरण 32 वर्ण,】
4चरण समतुकांत।

चल अब झटपट
मटकत भटकत,
तन मन तड़पत,
सजन सनम गम।

जन भल कर हल,
मचलत पल पल,
टहलत दल बल,
हरण दमन तम।

महक चहक गल
सकल बहल चल,
अब हर अटकल,
शरण वरण मम।

नयन शयन भज,
सकल नमन तज,
गरल पहल बज
वचन सहन दम।

   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

विधा ◆भुजंग प्रयात छंद◆
विधान~
(भुजंगी छंद+गुरु)
[ यगण यगण यगण यगण]
(122  122  122 122 )
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

निशा को भुलाओ सवेरा जगाओ।
दया प्रेम नाते निभाना सिखाओ।।
करूँ मान तेरा मिटाओ बुराई।
हरो पीर मेरी बढ़े जू मिताई।।

डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆

शिल्प:-
[मगण मगण(222 222),
दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]
        
        प्रभु की माया

   देखी तेरी माया
   है तेरा ही साया
   गाओ राधा नामा
   पूरा हो श्री कामा ।

   माँ गंगा ने तारा
   तूही मेरा सारा 
   तू है मेरी राधा
   हूँ मै तेरा आधा।

   मेरा साया कान्हा,
   कैसे बीते तन्हा,
   गाना गाओ सारे,
   सारे दोषा टारे।

   कैसे बीते रैना,
   मेरे भीगे नैना,
   माता दूरी टारो,
   भाई को भी तारो।

  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

◆ एकावली छंद ◆

शिल्प~[प्रति चरण 10 मात्राएँ
            5-5 पर यति,दो-दो चरण तुकांत]
          

रोक लो मन हनन।
भक्ति पथ हो मनन।
  राह में, शूल हों।
  नेह के, फूल हों।

तू निडर, चल वहीं।
कर्म कर, भज वहीं।
रात हो, प्रात हो।
दुख दर्द, मात हो।

सत्य हो, भान हो।
सरल हो, ध्यान हो।
  बैर तज, प्रेम हो।
अटल नित, नेम हो।

  तन रमें, मन मिलें।
भाव का, गुन खिलें।
  शान्ति हो, सुख सदा।
  मन रहे,  ये मुदा।

✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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