विद्वज्जनों की सभा *साहित्य संगम* को नमन 🙏🙏🙏
पुन: समीक्षक का गुरुतर दायित्व निर्वहन करने से पूर्व अपनी अज्ञानता\अपरिपक्वता की क्षमापना का आग्रह रखता हूँ |
आप सभी उदारमना कृपालु रहें~
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
आज द्वितीय पारी में ~~~
पहली रचना *आ० एस. के. कपूर 'श्री हंस' जी* की रही |
🙏 आपने वर्तमान सिनेमा के भटकाव पर चिंता व्यक्त की और अपेक्षा की कि सिनेमा संदेश व शिक्षाधारित बने | चरित्र निर्माण का बडा माध्यम हो सकता है सिनेमा |
बहुत सुन्दर 🙏
दूसरी रचना *आ० राजेन्द्र कुमार सारस्वत जी* की रही |
🙏 आपने सिनेमा पर पश्चिमी प्रभाव को दर्शाते हुये भाव रखे | संगीत के माध्यम से कहा कि भारतीय स्वर लहरियों में ढ़ला सिनेमा आज की आवश्यकता है | पश्चिमी फूहड़ता त्याज्य है |
बहुत सुन्दर 🙏
तीसरी रचना *आ० रितु गोयल 'सरगम' जी* की रही |
🙏 आपने सिनेमा को ग्लैमर का केन्द्र बताते हुये कहा हि यह यथार्थ के धरातल से दूर हो गया है | आधुनिकता के नाम पर अस्मिता को चोट पहुँचा रहा है | नये व पुराने सिनेमा का उदाहरण प्रस्तुत किया |
बहुत सुन्दर🙏
चौथी रचना *आ० सुमित सोनी जी* की रही |
🙏 आपने दादा साहब फाल्के का स्मरण करते हुये सिनेमा रुपी वृक्ष का विहंगम अवलोकन किया | सिनेमा के गुणावगुणों पर चिंतन रखा और पतन व उत्थान की भूमिका रखी |
बहुत सुन्दर🙏
पाँचवीं रचना *आ० सरला सिंह* की रही |
🙏आपकी रचना विषय से इतर होने पर भी सत्योद्घाटक |
बहुत सुन्दर 🙏
छठवीं रचना *आ० जागेश्वर प्रसाद 'निर्मल' जी* की रही |
🙏 आपने सिनेमा की आधुनिकता में खोती हुई कलाओं के प्रति चिंता प्रकट की | संस्कृति के क्षय को दर्शाते हुये बढ़ती विषमताओं की ओर ध्यानाकर्षण किया |
बहुत सुन्दर🙏
सातवीं रचना *आ० रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे जी* की रही |
🙏 आपने सिनेमा पर लेखन करते हुये अतीत के पृष्ठ पलटे और मूक से वाक् होने से लेकर वर्तमान तक का सार संक्षेपित चित्र सा पटल पर रखा | चिंता व समाधान रखें |
बहुत सुन्दर 🙏
आठवीं रचना *आ० कीर्ति अनुराग अग्रवाल जी* की रही |
🙏 आपने वर्तमान सिनेमा की अर्थ केन्द्रित बताया | इस दिशा में हुये पतन को इंगित कर पुराने स्वर्णिम काल को याद करते हुये उसके अवसान पर खेद प्रकट किया |
बहुत सुन्दर 🙏
नवीं रचना *आ० सरला सिंह जी* की रही |
🙏 आपने सिनेमा के मार्गदर्शक रूप में प्रयोग की बात कही | साथ ही साथ धन की लिप्सा में हुये सांस्कृतिक अवसान, विशेषकर स्त्री की छवि पर चिंता व्यक्त की | इसका भावी पीढ़ी पर होने वाले दुष्प्रभाव को भी इंगित किया |
बहुत सुन्दर 🙏
दसवीं रचना *आ० वकील अहमद मुज़तर जी* की रही |
🙏 आपने भारतीय सिनेमा की शुरुआत का संकेत करते हुये फ़िल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' की बात की | सिनेमा के १०० वर्षों के इतिहास पर प्रकाश डालते हुये कहा कि समय के साथ अच्छाई को पश्चिमी अँधानुकरण ने दबा दिया है | आज की विषमताएँ इसी का प्रमाण है |
बहुत सुन्दर 🙏
ग्यारहवीं रचना *आ० तेजराम नायक जी* की रही |
🙏 आपने मुक्तक के माध्यम से सिनेमा के अज़ब चलन पर प्रहार किया | आपने कहा कि सिनेमा एक नश़ा सा है और इसका दुष्परिणाम भोग भी रहें हैं |
बहुत सुन्दर 🙏
बारहवीँ रचना *आ० चंचल पाण्डेय 'चरित्र जी* की रही |
🙏 आपने फ़िल्मों में बढ़ती अश्लीलता व विषमता पर ध्यान दिलाया और आह्वान किया कि हमें इनका बहिष्कार करना चाहिए |
बहुत सुन्दर 🙏
तेरहवीं रचना *आ० मुकेश शर्मा जी* की रही |
🙏 आपने फ़िल्मों के बुरे हाल पर तो चिंता व्यक्त की ही, साथ ही कहा कि आज परिवार के साथ बैठकर सिनेमा देखना कठिन हो गया | बढ़ती हुई सिनेमाई व्याभिचारिता की ओर ध्यान दिलाते हुये उदाहरण रखे |
बहुत सुन्दर 🙏
चौदहवीं रचना *आ० बीना शर्मा 'झंकार' जी* की रही |
🙏 आपने मुक्तक के माध्यम से सिनेमा कला में हो रहे धोखे की ओर संकेत किया | इसकी परिणाम बताते हुये बहिष्कार करने का संकल्प लेने की बात कही |
बहुत सुन्दर 🙏
पन्द्रहवीं रचना *आ० संगीता पुरी 'श्रेया' जी* की रही |
🙏 आपने कहा कि आज के विपरित वातावरण में फलते-फूलते सिनेमा को ही युवाओं ने अपना आदर्श बना लिया है | सिनेमा आज आदर्शों के स्थान पर जहर के बीज बो रहा है | इस तरह तो एक दिन हम अपना सर्वस्व खो चुके होंगे |
बहुत सुन्दर 🙏
सोलहवीं रचना *आ० राजवीर सिंह 'मंत्र' जी* की रही |
🙏 आपने नाट्यशास्त्र को सिनेमादिक कलाओं का केन्द्र बताते हुये कहा कि आज भारतीय सिनेमा पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो गया है | फूहड़ता इसी का परिणाम है | हालांकि यह हिन्दी के उत्थान में भी सहायक है | सिनेमा ने सभी विषयों पर फ़िल्में बनाई हैं | आज पुन: श्रेष्ठ सिनेमाकारों की जरूरत है, जो इसे आदर्शों की ओर ले जाते हुये उपयोगी व सहायक बना सकें |
बहुत सुन्दर 🙏
सत्रहवीं रचना *आ० बिजेन्द्र सिंह 'सरल' जी* की रही |
🙏 आपने वर्तमान सिनेमा के बुरे प्रभावों पर चिंता प्रकट की | विशेषकर नारी चरित्र की विपरित छवि और बढ़ती हुई हिंसा -अश्लीलता पर ध्यान दिलाया |
बहुत सुन्दर 🙏
अठारहवीं रचना *आ० राहुल शुक्ल जी* की रही |
🙏 आपने कहा कि विपरितताओं के बाद भी यदि ग्रहण किया जाये तो सिनेमा आज भी बहुत कुछ अच्छा भी सृजित कर रहा है | हाँ यह सत्य है कि संस्कारों का बहुत हद तक पतन हो चुका है, पर आज भी यदि व्यावसायिकता से इतर सोचकर फ़िल्म निर्माण की पहल की जाये तो संपूर्ण कलेवर ही बदल सकता है |
बहुत सुन्दर 🙏
🙏🙏🙏 जय-जय
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
पूर्णत: एकाग्र होकर समीक्षा का प्रयास रहा | फिर भी अकिंचन से त्रुटियाँ हुई ही होगी | हो सकता है कि किसी रचना पर ध्यान न गया हो या कुछ गलत कह दिया हो |
एतदर्थ क्षमा🙏
©भगत
Comments
Post a Comment