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इन्द्रवशा छन्द

◆इन्द्रवशा छंद◆

विधान~
[ तगण तगण जगण रगण]
(221   221   121  212)
12वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

माया जुटाई  कितने प्रकार से।
कैसे बचेगा अब काल मार से।।
सूरे अभी सम्हल नाम जाप ले।
गोविन्द जू  गाकर मेट ताप ले।।

                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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