🙏🏻धुंध/ कोहरा🙏🏻
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समझ नहीं पाया मैं
कुछ साफ दिखा नहीं
शरद का धुंध है कि
मेरी नजर का धोखा है
मेरी आँखें खराब हैं
या हवा का झोंका है
मन भी परेशान रहता है
कुछ समझ आता नही
छाया सोच पर धुंध है
विचारों का बिन्दु बन्द है
स्वर्णिम किरणें आयेगी
भानु सकल आभा से ही
तन मन प्रफुल्लित होगा
है प्रसून सी अभिलाषा
फैले प्रकाश की आशा
हटे राह से कुहासा
नेह प्रेम की लहरों से
पायें जीवन भाषा
धुंध घटेगा डरो नही
कठिन डगर है हटो नही
राह मिलेगी लगन तो रख
धैर्य साथ का यतन तो रख।
निराकार की भक्ति
निखारे आत्मा को
खुलें चक्षु ज्ञान से
हटे अज्ञान का धुंध।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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