सच्ची निष्ठा सच्चा दोस्त।
मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।
कोई दिखता ही नहीं
रास्ता बताने वाला।
सुख में बनता साथी
दुख में भी रखवाला।।
पहचान ले बारिश में
आँख के भीआँसू को।
प्रेम सहयोग करता
बने भूख में निवाला।।
रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस।।।।।।
दिनांक- ०७/०२/२०१७
निष्ठा
निष्ठा -निश्चय, दृढ़ता, एकाग्रता, तत्परता, भक्ति, श्रद्धा आदि समस्त भावों का समावेश है।निष्ठा एक अनूठा अनुराग , एक अद्वितीय विश्वास है। एक सच्ची मेहनत, लगन का द्योतक है निष्ठा।
लेकिन आज हमारे समाज में आधुनिकता के साथ निष्ठायी भाव भी बदल रहे हैं। हमारे समाज का मानवीयकरण निष्ठावान की बजाय निष्ठाहीन होता जा रहा है, इसकी मुख्य वजह अकर्मण्यता निरुत्साह है, क्योकि किसी कार्य के प्रति निष्ठा का संचार तभी होता है , जब हम उस कार्य के प्रति उत्साही होते हैं। उस कार्य को करने की उमंग भावना जागृत होती है, वह उत्साह, वह उमंग हमें उस कार्य के प्रति उत्साहित करता है, हमें निष्ठावान बनाता है।
जब हमें कोई कार्य मिलता है, या किसी कार्य का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है, तो हमें यह नही ज्ञात होता है, कि यह कार्य कैसे किया जाएगा, मन में विचार यहाँ तक भी आ जाते हैं कि क्या यह कार्य पूर्ण हो सकेगा या समय पर पूर्ण हो पायेगा। बड़ी असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, लेकिन कार्य के प्रति श्रद्धा भाव, एकाग्र चिंतन हमें सफलता की ओर ले जाता है।
वस्तुतः किसी भी कार्य को करने का सफल मंत्र उस कार्य के प्रति सच्ची निष्ठा है, क्योकि हर एक कार्य की संपन्नता तभी होती है, जब उसे सच्ची निष्ठा और भक्ति भाव से किया जाता है।
अपने भारत वर्ष में कहा भी गया है कि "कर्म ही पूजा है।"
सौम्या मिश्रा अनुश्री
निष्ठा
निष्ठा रोज बदलती है, यहाँ पर बेईमानों की,
चिता भी रोज जलती है, किसी के अरमानों की।
अबकी बार मत हमें दे दो, विकास की गंगा बहा देंगे,
सबके सब लुटेरे हैं यहाँ, हम वोट किसको और कहाँ देंगे ।।
किसी ने पंजा लड़ाया है, तो किसी ने साइकिल चलाया है,
कोई कर रहा सवारी हाथी की, तो किसी ने कमल खिलाया है ।।
बदल रही है निष्ठा लोगों की यहाँ पर चन्द वोटों की खातिर,
जीत कर करेंगे हमारे सपनों का सौदा ये चन्द नोटों की खातिर ।।
बोलते हैं जब ये तो लगता है कि जैसे यही हमारे भाग्य-विधाता हैं,
चुनाव बाद पता चलता है कि यही हमारे समस्त दूःखों के दाता हैं ।।
अबकी बार मोह में न पड़ना "सागर", 'मत' देना तुम ध्यान से,
बेचकर मत खिलवाड़ न करना अपने निष्ठा-औ-सम्मान से ।।
- कुमार सागर
निष्ठा
कवि से डरे सरकार
कही आईना दिखाते
तो कही सत्य की राह बताते
कलम की बोल से थर्राते सरकार।
कई कवि अपने झुकाए नार
बने उसके हित चिन्तक चाटुकार
ले सम्मान चले दरबार
चारण दास भाट बन बैठे द्वार।
जैसे भोंक रहा श्वान
दो रोटी के चक्कर में
हिला रहा पूंछ
चाट रहा झुटन
दरबारी बन इतरा रहा
अपने स्वामी के गुण गा रहा
बेवक्त झिड़की भी खा रहा
व्यर्थ नाकाबिल का झिड़की पा रहा।
कलम देख, देख कलम की ताकत
न हो मजबूर ,धन लालच भूल
सत्य निष्ठ आचरण कर
सत्य लेखन कर सत्य अनुसन्धान कर।
कलम निष्ट भूला
सम्मान तो मिलेगा
पर तू पराधीन मर जायेगा
गुलाम मानसिक कहलायेगा।
तू सत्य अनुसाशन लिख
ससम्मान अमर हो जायेगा।
स्वरचित
नवीन कुमार तिवारी अथर्व
निष्ठा
निष्ठा जब भी टूटती ,
मन पर हो आघात ।
स्वारथ के इस दौर में ,
गुम होते जज्बात ।।
भूल गये हैं आज सब ,
रिश्तों के तटबंध ।
माया भी है तोड़ती ,
निष्ठा के अनुबंध ।।
सच्ची निष्ठा अब कहाँ ,
देख भाल कर प्यार ।
पैसा जिसके पास है ,
सबका ही वह यार ।।
निष्ठा हो कर्तव्य की ,
सजग रहे जब देश ।
कर्मों की थाली लिये ,
तब बदले परिवेश ।।
निष्ठा से हम जोड़ते ,
सबको संगम तीर ।
देख आचरण आज पर ,
बढे ह्रदय की पीर ।।
डॉ अरुण श्रीवास्तव "अर्णव"
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