◆सुमति छंद◆
विधान-नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण।
सरस भावना प्रियतम प्यारी|
सरल साधना सुखमय नारी||
विरह धीर की कब तक ताकूँ|
सुखद चाहतें हर पल झाकूँ||
मिलन कामना तन-मन प्यासा|
सकल स्नेह से झरत कुहासा||
शुभम प्रेम है शरण सहारा|
चमक चाँदनी मधुरिम तारा||
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
सुमति छन्द
सनम बेवफा जब तब देखा|
मधुर प्रेम था मम मुद लेखा||
भगत चाशनी मधु सम लागे|
विरह दामिनी कड़ कड़ जागे||
© डॉ० राहुल शुक्ल'साहिल'
गौबर को गुरु पद रखा, नाम भगत पहचान |
आता जाता कुछ नहीं, किया नहीं अवदान ;
भगत तो दास रहा जी |
©भगत
सरस सरल साहिल सहित, ओम दिव्य सह आस |
मधुर और रवि दीप्त सब, भगत हृदय. के पास ||
©भगत
किरपा हो पितु मातु की,गुरुवर का सिर हाथ|
यही दिव्य की कामना,पग पग पर हो साथ||
दिव्य
गहन ज्ञान के गुरुवर ज्ञाता|
गुरुव नेह है जगत विधाता||
भगत नाम है सुगढ़ सहारा|
पहर बीतता तुम बिन सारा||
© साहिल
सब शारद का नेह बस, कहाँ हमारी ठौर |
जो चाहे बिधिना करे, करे न कोई और ;
जमूरे सारे हम तो |
©भगत
सुधिजन सिगरे अब मिले, मिटी पीड़ हिय आप |
अपने बेगाने हुये, देत रहे जो ताप ;
बड़ी शीतलता आई, गुरु गौरव मितराई ||
©भगत
खुद गौरव के रूप जो, देत मान सन्मान |
बाहर भीतर एक से, ओम नाम के मान ;
नमन करता बालक है ||
©भगत
हक़िके बात और हालात ही दीगर होते हैं ,
वरना कौन मुआ दर्द को गले लगाता है यहाँ |
©भगत
वरदवर,
प्रभु कृपा और आप से सुधिजनों का स्नेह-पिपासु रहा हूँ|
हालात तो यूँ समझिए कि~
दुनियावी दरवेश बना फिरता हूँ आजकल
खुशियाँ जीने नहीं देती दर्द मरने नहीं देता |
©भगत
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