वानप्रस्थ/संसार
मनहरण घनाक्षरी (क्र ० - ३१५)
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सीखो नित नव ज्ञान, बाल युवापन जान,
सीखो नित नव ज्ञान, आश्रम गृहस्थ नव, सृजन कराता है।।
त्याग गति ये आघूर्ण, हुए सारे कार्य पूर्ण।
वानप्रस्थ जीवन की, श्रेष्ठता जताता है।।
मुक्त काल आस-पास, तजो परिवार"आस"।
ले लो सन्यास अब ये,मुक्ति दिलवाता है।।
आश्रमों का व्यवहार, माना है संसार सार।
पूर्वजों का ये विचार, उच्च गति दाता है।।
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कौशल कुमार पाण्डेय "आस"
दिनांक~ ०७ - ०३ - २०१८।।
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वानप्रस्थ 🚶♂
शिक्षा और संस्कार सिखाते मानव को कर्म,
सकल भाव से सेवा ही सच्चा मानव धर्म,
बचपन व किशोर अवस्था दिखलाती है ओज,
प्रौढ़ अवस्था के अनुभव का वानप्रस्थ है मर्म|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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