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शिक्षा में योग एवं शारीरिक शिक्षा की महत्व
‘‘शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्’’ अर्थात शरीर के माध्यम से ही व्यक्ति अपने सभी कर्तव्यों (धर्मों) का पालन करता है। चूंकि धर्म का पालन एवं साधन शरीर से ही सम्भव है अतः उसका स्वस्थ एवं निरोगी रहना अत्यन्त आवश्यक है। वैसे भी मानव जीवन का प्रथम सुख निरोगी काया ही है, इसलिये स्वास्थ्य की रक्षा के विषय में जानकारी तथा उसके बारे में जागरूक रहना बहुत जरूरी है| सेहतमंद जीवन सबसे बड़ी खुशी है| स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन पाया जाता है, शारीरिक शिक्षा व जागरूकता सभी के लिए बहुत जरुरी है|
स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। शारीरिक दृष्टि से निरोगी रहना आज के यांत्रिकी युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। लेकिन आरोग्य का अर्थ केवल शारीरिक दृष्टि से निरोगी रहना ही नहीं है बल्कि यह व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ बने रहने की एक स्थिति है जिसके साथ साथ हमारी आत्मा का शुद्ध रहना भी अति आवश्यक है |
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, "शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आत्मिक साम्यावस्था कि स्थिति ही स्वास्थ्य है |"
शरीर के लिए जरुरी पोषक तत्वों की कमी, प्रदूषित जलवायु, खादयुक्त एवं कीटनाशक की अधिकता वाले अनाज, असंतुलित आहार एवं वातावरण में मौजूद विषैले तत्व और सूक्ष्म जीव जैसे विषाणु, किटाणु आदि, विभिन्न प्रकार के रोगों का प्रमुख कारण है | जैसे - जैसे वैज्ञानिक प्रगति की ओर हम बढ़ रहे हैं वैसे ही नये - नये प्रकार के रोगों से ग्रस्त होकर औसत आयु को घटा रहे हैं |
अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति एवं पोषकीय खाद्य पदार्थों को बढ़ाकर किसी भी रोग से लड़ने की क्षमता का विकास कर सकते हैं एवं संक्रमण को रोक सकते हैं | कोई भी रोग होने पर जितना हो सके परहेज करें व बिमारी की शुरुआती स्थिति में घरेलू नुस्खे, एक्यूप्रेशर, आयुर्वेद, होम्योपैथिक, प्राकृतिक चिकित्सा, योग, रेकी आदि हानिरहित, सुगम, सरल, सस्ती प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों का सहारा लेना चाहिए तथा केवल आपातकाल में ही एलोपैथी का सहारा लें क्योंकि एलोपैथी दवाइयों के दुष्प्रभाव बहुत अधिक है|
शैक्षिक संस्थाओं एवं जन सामान्य के लिए स्वास्थ्य जागरूकता एवं शिक्षा का महत्व जीवन में अति आवश्यक है | बच्चों को बचपन से ही शरीर को स्वच्छ रखने एवं सेहत के बारे में जानकारी देना चाहिए जिसमें सर्वप्रथम अभिभावक और परिवार का महत्व है| प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक संस्थाओं एवं विद्यालयों में भी स्वास्थ्य शिक्षा दी जानी चाहिए एवं शारीरिक क्रियाओं जैसे आसन, प्राणायाम एवं योग की शिक्षा में विद्यार्थियों को योग्य बनाना चाहिए जिससे वे अपने जीवन को निरोगी रख सकें |
विद्यालयी पाठ्यक्रम में योग एवं शारीरिक शिक्षा को समाहित करके रोजगार के नये अवसर भी बनाएं जा सकते हैं| प्राथमिक, उच्चतर माध्यमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षाओं में योग, प्राणायाम एवं स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में जोड़ना उतना ही आवश्यक है जितना अन्य विषयों और भाषा का ज्ञान जरुरी है |
©. डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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