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इक्कीस छन्दीय राम स्तवन (संत श्री छन्द गुरु शैलेन्द्र खरे 'सोम')

सभी मित्रों को पावन पर्व राम नवमी की अनंत शुभकामनाएँ हार्दिक बधाईयाँ~ जय सियाराम💐🍀🌺🌸👏👏👏👏👏👏

∆∆∆  इक्कीस छंदीय श्री राम-स्तवन. ∆∆∆

1-◆शुभमाल छंद◆
शिल्प:-
[जगण जगण(121 121),
दो-दो चरण तुकांत,
6वर्ण प्रति चरण]

सिया    भरतार।
करें  भव   पार।।
अनेक    प्रकार।
करो     मनुहार।।

==========

2-◆कुसुम छंद◆
विधान~
[ नगण  नगण लघु गुरु]
( 111   111  1    2)
8 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

सिय  रघुपति भजो।
सकल कुमति तजो।।
जरत   जगत   सबै।
कछुक  समय  अबै।।

============

3-◆बुद्बुद छंद◆
विधान~
[ नगण जगण रगण]
(111  121  212)
9 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

रघुपति  जू  निहारिये।
गति अब तो सुधारिये।।
नमन  करूँ  अधीन हूँ।
सकल  प्रकार  दीन हूँ।।

==============

4-◆मानस छंद◆
विधान~
[नगण यगण भगण सगण]
(111  122  211 112)
12 वर्ण,यति 6,6 वर्णों पर
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

चरण पखारूँ,श्री रघुपति के।
पटल उघारौ,मो जड़मति के।।
भव भय टारौ, संकट हर लो।
चरनन  मोहे, चाकर कर लो।।

===================

5-◆मनोरम छंद◆
विधान-प्रति चरण 14 मात्राएँ
2122 2122

राम  जू   अब   तो  निहारौ।
नाथ   गति   मोरी   सुधारौ।।
दास     शरणागत    बचाये।
प्रभु सुजस अस लोक गाये।।

==================

6-◆द्रुतपद छंद◆
विधान~
[ नगण भगण नगण यगण ]
(111   211  111  122)
12वर्ण,4 चरण,यति 4,8 वर्णों पर
दो-दो चरण समतुकांत]

अवधनाथ   दशरथ    दुलारे।
सब   प्रकार  समरथ  सहारे।।
पद पखार विनय नित कीजे।
प्रभु उदार  शरण  गह लीजे।।

===================

7-◆ रुचिरा(२) छंद◆
विधान~
[ भगण तगण नगण गुरु गुरु]
( 211   221  111  2  2)
11वर्ण,4 चरण,यति 5-6वर्णों
पर,दो-दो चरण समतुकांत]

कौशलराजा,रघुपति प्यारे।
साधक तारे, असुर  विदारे।।
नित्य मनाऊँ,नमन करूँ मैं।
सुंदर  झाँकी, हृदय धरूँ मैं।।

=================

8-◆सुमति छंद◆
विधान-
नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2-2चरण समतुकांत,4चरण।

द्रवहुँ  राम  जू  नमन करूँ मैं।
छवि अनंत  ये  हृदय धरूँ मैं।।
सब प्रकार चाकर तव स्वामी।
चरण चापता  नित अनुगामी।।

==================

9-◆पवन छंद◆
विधान~
[भगण तगण नगण सगण]
(211   221  111  112)
12 वर्ण प्रति चरण,यति{5,7}
4 चरण,2-2 चरण समतुकांत।

सोचत काहे, रघुपति  भज ले।
जापत जा रे,भव भय तज ले।।
सुंदर   कैसे, कमल   नयन जू।
राघव  कीजे,  हृदय  सयन जू।।

====================

10-◆चन्द्रिका छंद◆
विधान-
नगण नगण तगण तगण गुरु
(111 111 221 221  2)
2-2चरण समतुकांत,7,6यति।

सुखमय लगता, नाम भी आपका।
हिय महुँ रुचता,काम भी आपका।।
उरपुर   बसिये, है  यही   कामना।
भव भय मुझको, रामजी  थामना।।

=====================

11-◆इन्दिरा छंद◆
विधान-
[नगण रगण रगण+ लघु गुरु]
111 212  212    12,
चार चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

सुजन आज क्यों देर कीजिये।
चरण  राम  के  पूज  लीजिये।।
अधम  दीन   तारे  कृपालु  हैं।
जगत   के   सहारे   दयालु हैं।।

===================

12-◆तोटक छंद◆
विधान~
4 सगण/चरण, चार
चरण,दो-दो चरण स्मतुकांत।

भव  भेषज  श्री  रघुनाथ  लला।
सिय  सोहत  संग  अनूप कला।।
लख या छवि को मन होत मुदा।
रहिये  उर  राजत   नाथ   सदा।।

बरनै गुन  ते  कवि  कोबिद को।
उर  के  पुर  में  सिय संग बसो।।
जस तीनहुँ  लोकन  में जिनको।
पद चाकर "सोम" सदा तिनको।।

=====================

13-◆चौपई/जयकारी/जयकरी छंद◆
विधान~
चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,
अंत में गुरु लघु।दो-दो चरण समतुकांत।

जय  हो   श्री  राघव सरकार।
त्रिभुवन   महिमा  अपरम्पार।।
मर्यादा      पुरुषोत्तम   आप।
करते   समन  सकल  संताप।।

पुनि पुनि नावहुँ चरणन शीश।
करिये    कृपा   कौसलाधीश।।
"सोम"झुकाये निश दिन माथ।
मोरे   हृदय   बसहुँ   रघुनाथ।।

====================

14-◆चंचला छंद◆
विधान~
[रगण जगण रगण जगण रगण + लघु]
(212  121  212 121   212    1)

राम जू  दयानिधान  मोहिं  दीजिये  उबार।
शारदा  जपें  अनंत  संत  भी  करें पुकार।।
प्रार्थना  यही करूँ  झुकाय शीश बार-बार।
"सोम" एक बार  दीन बंधु लीजिये निहार।।

==========================

15-◆घनमयूर छंद◆
विधान~
[ नगण नगण भगण सगण रगण लघु गुरु]
(111   111  211  112  212   1   2)
17वर्ण,4 चरण, {7,6,4 वर्णों पर यति}
दो-दो चरण समतुकांत।

दशरथ  सुत  जू,  अवध  दुलारे, मनै  भजो।
भरम  जगत  के, उलझत  जाते, सबै तजो।।
हर सुख  मिलता, पद रज पाके, विचार लो।
अनुपम लगती,छवि प्रभुजी की, निहार लो।।

===========================

16-◆असंबधा छंद◆
विधान~
[ मगण तगण नगण सगण+गुरु गुरु]
(222  221  111  112   22)
14 वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

कैसी ये  माया  सब जगत नचाती है।
देती है क्या साथ विलग रह जाती है।।
भूला  काहे  झंझट तज जग के सारे।
मानो मेरी  तो  गुण  रघुपति के गा रे।।

=======================

17-◆चंडी छंद◆
विधान-
नगण नगण सगण सगण गुरु
(111 111 112  112 2)
दो-दो चरण समतुकांत,4 चरण।

चित धर भज रघुनाथ लला को।
विष सम गिन हर झूठ कला को।।
नर तन धर शुभ कार्य किये जा।
अमिय सरस रस सोम पिये जा।।

भज रघुपति  हर  काम बिहाई।
सब विधि सुलभ  सबै सुखदाई।।
कुछ  परहित  कर  ले उर लाई।
सच  यह  जगत  बड़ा दुखदाई।।

======================

18-◆चंचरी छंद◆
विधान-
(12,12,12,10 मात्राओं पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत,चरणान्त गुरु)

अजा गजा गिद्ध सिद्ध,
   राम  जू   उबार  दये,
       द्रवहुँ  सो  दीनानाथ,भव से उबारिये।
राखौ जू शरण मोहिं,
    आन आसरौ न कोय,
       चरणों में पड़ा दीन,अब तो निहारिये।।
जानौं दीन हीन गति,
   राम जू   सुधार  दई,
       सियानाथ  मोरी गति,तैसइ सुधारिये।
सुनिये  पुकारे "सोम",
   कौशलकिशोर  जू सो,
       नेह को  निमंत्रण है,हिय में पधारिये।।

============================

19-◆चौपइया छंद [सम मात्रिक] ◆
विधान~
{4 चरण समतुकांत,प्रति चरण 30 मात्राएँ,
प्रत्येक में 10,8,12मात्राओं पर यति 
प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, 
जगण वर्जित,प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2),
चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद 
मनोहारी हो जाता है।}
          
कलु कलुष निकंदन,दशरथनंदन,
                         कौशिल्या  के  लाला।
सन्तन हितकारी , अवधबिहारी,
                         मानस   मंजु मराला।।
वंदहुँ तव चरणा,भवभय हरणा,
                       सेवत सकल भुआला।
गावहुँ  गुन  ग्रामा ,पूरण-कामा,
                       सुंदर "सोम" कृपाला।।

==========================

20-◆रसाल छंद◆
विधान~
[भगण नगण जगण भगण जगण जगण+लघु]
(211  111  121  211  121 121  1)
19 वर्ण , 9 ,10 वर्णों पर यति ,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।

राघव   रघुपति  राम,  आप  सबके  दुख टारन।
हे जगपति  सुखधाम, नाथ  सब काज सँवारन।।
जापत सियहि समेत, दास   पद  पंकज चाकर।
गावत गुन गन नित्य,"सोम"निज शीश नवाकर।।

==============================

21-◆मकरन्द छंद◆
विधान~
[ नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु]
(111122,111122,11111111,111122)
26 वर्ण,4 चरण,यति 6,6,8,6,वर्णों पर
दो-दो चरण समतुकांत]

अवध दुलारे, जगत  सहारे,
             पुनि पुनि  प्रनवउँ,तव गुण गाऊँ।
सब विधि सेवा,करहहुँ देवा,
             सकल जगत तज,पद रज पाऊँ।।
द्रवहुँ दयाला, परम कृपाला,
              सुमिरिहुँ मन महुँ ,अति हरषाऊँ।
रहहुँ  ससंकू,बड़  मति रंकू,
           कहहुँ विमल जस,अनुदिन ध्याऊँ।।

                                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Comments

  1. *बहुत ही उत्तम छन्द प्रस्तुति के साथ राम स्तुति*
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    गजब शानदार बेहतरीन अति सुन्दर अनुपम उत्तम उत्कृष्ट सर्जन सर्वोत्तम छन्द वर्षा
    बहुत बहुत बधाई हो आ० शैलेन्द्र खरे 'सोम'गुरुदेव,
    श्रेष्ठ कलम के समक्ष हम सभी नतमस्तक हैं|

    आपका छन्द ज्ञान, भारतवर्ष में जन्म जन्मांतर तक याद किया जाएगा|
    हिन्दी छन्द ज्ञान की दिशा में आपका यश हजारों वर्षों तक प्रतिष्ठित होगा|

    जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति परिवार की ओर से
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ||
    💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

    🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁


    *🚩मानस छंद🚩*

    विधान~
    [नगण यगण भगण सगण]
    (111 122 211 112)
    12 वर्ण,यति 6,6 वर्णों पर
    4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत

    *संत सोम*
    पद रज ध्याऊँ, संत गुरु कहूँ|
    हरपल मैं तो, सोम रत रहूँ||
    मुद मन मेरा, छंद मय हुआ|
    जग तम भागा, दूर भय हुआ||

    अचरज कैसा, सोम गुरु कहो|
    जन जन सारे, संत गुन गहो||
    मिल कर गाएं, गीत सुनहरा|
    हम नित पाएं, जीवन गहरा||

    अति प्रिय भाए, सोम सरलता|
    तन मन धारौ, मित्र तरलता||
    सुखद सहारा, नैनन भर लो|
    गुरुवर का ही, वंदन कर लो||

    © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

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