जय जय हिन्दी विशेषांक ~नंदिनी काव्य संग्रह विमोचन कार्यक्रम को समर्पित साभार एक गीत |🌹🙏🏻🌹
सुमित पियूष का झरना झरता,
करो आचमन आ मिलकर|
साँझ अँधेरी हो आई है|
आजा प्रियवर अब घर पर||
भोरकाल में मिलन हुआ था|
मधुर मिलन का खिला कमल||
पुलकित होकर प्रेमभावना|
बनी प्यार की एक गजल||
बृजवासी गुजराती पुट को|
पाकर पावन हृदयनगर||
आजा प्रियवर ~~~~
अलबेला साहिल सुमित साथ|
घर~प्रांगण में रखे कदम||
खुशियों के सब वरददेवता|
भगत नेह औषधि अनुपम||
सरल चरण बन जीवन के|
गाओ साथी जीभर कर||
आजा प्रियवर ~~~~
शशि रंजन साथ मिला मुझको|
फिर प्रवीण आनेह मिला||
तारा के घर में आकर तो|
जैसे हिन्दुस्तान खिला||
भारत हंस हुआ संघर्षी |
देश प्रेम देखो जीकर||
आजा प्रियवर ~~~
सब कुछ सम्भव है इस जग में|
पहले थोड़ी प्यास भरो||
अधरों पर नित मुस्कान मिले|
ऐसा जरा प्रयास करो||
आस वास विश्वास यशस्वी|
सरस नंदिनी पय पीकर||
आजा प्रियवर ~~~~
कहता मन हर रोज यजन हो|
सोम दिव्य शीतल मन हो ||
तिलक लगायें हम सब जिसका|
मधुर भावना चंदन हो|
तुम ही हो दिनमान सुनहरे|
बनो रश्मि आलोक प्रखर||
आजा प्रियवर ~~~
🇮🇳दिलीप कुमार पाठक "सरस"
सिसकियाँ
विधा~गीत
आकण्ठ हृदय से निकल गयीं|
सिसकीं होठ सिसकियाँ||
सिसक-सिसक सिसकी कहती|
अँखियाँ बहतीं ज्यों नदियाँ||
बिछड़ गयीं पर तुम तो खुश थीं|
भूल गया बिछड़न गम को||
किन्तु मिलन ये पाया कैसा ?
मिली आँख छलकन हमको||
छला नियति ने चुपके से फिर|
दुख की आ गिरी बिजलियाँ||
सिसक -सिसक सिसकी -----------
लिपट लिपट के किससे रोती|
गया बीत कुछ छुटपुट में||
जीवन साथी वो छोड़ गया |
फिर यादों के झुरमुट में||
दो कलियों की मुस्कानों से|
महकीं घर आँगन गलियाँ||
सिसक -सिसक सिसकी---------
दुख देने वाले ने देखा|
ये खुश कैसे रहता है ?
हर एक दृष्टि मम यौवन पर|
चुभन हृदय बस सहता है ||
गिरीं टूट संबंध टहनियाँ ||
नोंच खरोंच घृणा घड़ियाँ |
सिसक -सिसक सिसकी---------
माना समझौता जीवन है|
पर कुछ अपना भी मन है||
लता आश्रय एक चहाती |
चाहत की बस तड़पन है||
दुख बहुत बड़ा हार न हिम्मत|
कहतीं जब तब आ सखियाँ||
सिसक -सिसक सिसकी--------
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
सार छंद
16*12
चार चरण, दो दो समतुकान्त
भोर हुआ है अब तो जागो,
कुछ तो मन में ठानो|
गुरुवर कहते प्रतिपल हमसे,
कुछ सीखो कुछ जानो||
लगता है सूरज जैसे उठ,
बिस्तर से भागा है |
प्राची माँ ने पुचकारा है,
तब हँसकर जागा है ||
दिलीप कुमार पाठक सरस
एक दोहा~
तारे ओझल हो गये, गया चाँद का नूर|
सूरज हँसता आ गया,हुआ अँधेरा दूर||
🖊दिलीप कुमार पाठक "सरस"
जय जय
गिरिधारी छंद
112 111 122 112
मतभेद जगत में है छलना||
मम हाथ पकड़ माता चलना||
नित नैनन विधि सोहे समता|
पलना मन ललना माँ ममता||
सब रूप जगत को है निरखो|
सच जानहुँ सब धोखो मन को||
सब जानत वह माता मन की|
गति है सुर लय है जीवन की||
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दिलीप कुमार पाठक सरस
गीत~10+10,माँ
इत उत नित कहती,लल्ला है मेरो|
ओ मइया मोरी, बालक मैं तेरो||
लला बड़ो नटखट, झपटत है झटपट|
करै खूब खटपट, सरक जात सरपट||
झट भागत आवत, तू कसकर पकड़त|
कान खींच मेरे, मोपै तू अकड़त||
फिर डाँट डपट माँ, कहती कुछ खा ले|
पढ़ लिख फिर सो जा, हुआ है अँधेरो|
ओ मइया मोरी, बालक मैं तेरो |~2
मइया की मइया, उनकी भी मइया|
आदि शक्ति जननी , नवइया खिवैया||
चरणों में तेरे,सुख की है छैया|
तुझ बिन ओ मैया, कौन है सुनैया||
आजा ओ माता, लल्ला पुकारता|
भूखो दुलार को, पथ तेरो हेरो||
ओ मैया मेरी, बालक मैं तेरो||~2
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दिलीप कुमार पाठक सरस
कलाधर छंद'
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विधान - गुरु लघु की पन्द्रह आवृत्ति और एक गुरु |
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हिन्दवीर का प्रहार,शत्रु कौ उखाड़ देत|
नेति~नेति है प्रणाम, हिन्द के सुवीर कौ|
हंस~सा विवेक पास,हिन्द विश्व का विजेत|
जान लेत पास आयि, नीर और क्षीर कौ||
पाक~चीन रोज~रोज, आँख हैं दिखात भीरु|
दाँत तोड़ पेट फाड़,मेटि हौ लकीर कौ||
आँख दोउ फोड़फाड़,हाथ~पाँव तोड़ताड़|
चीरफाड़ फेंकि देउ, शत्रु के शरीर कौ|
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दिलीप कुमार पाठक सरस
[शहीद~ए~आजम भगत सिंह को भावभरी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए ~
मनहरण घनाक्षरी
सादर प्रस्तुत है ~☘💐🙏🏻💐☘
हिन्द देश की है शान, भगत महान वीर|
धूल ही चटायी सदा, बैरियों की चाल को||
जिसने छठी का दूध , गोरों को दिलाया याद|
खूब है छकाया ,काटा,जिय के जंजाल को||
चढ़ गया फाँसी फंदा,मातृभूमि हित हेतु|
ललकारा ताल ठोक, हँस~हँस काल को||
हो गया शहीद वीर, किन्तु हार नहीं मानी|
नमन हजार बार ,भारती के लाल को ||
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दिलीप कुमार पाठक सरस
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