∆ सुमति छंद ∆ विधान - नगण रगण नगण यगण (111 212 111 122) 2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण मधुर रागिनी सुर लय गाए| करुण वेदना दुख तम जाए|| पहर बीतते तुम - बिन कैसे| गहन रात की करवट जैसे|| सकल नेह की सुखमय ...
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ