🎈 मनहरण घनाक्षरी 🎈
घन -घन घन -घन,
घन घन-घोर घटा,
घुमड़त बदरा जो,
बारिश निराली है |
शब्द शब्द बोल रहे,
वर्ण - वर्ण खेल रहे,
सावन में सजनी की,
कजरी निराली है |
हरी -भरी सुनहरी,
मन भाए दुपहरी,
जहाँ देखो चहुँओर,
पायी हरियाली है |
बाल वृद्ध घूम रहे,
मस्ती में झूम रहे,
सावन से मीत मेरे,
छायी खुशहाली है |
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
🙏🙏🙏🙏☘☘☘☘🙏🙏🙏
Comments
Post a Comment