डॉ० लियाकत अली:
विषय- सावन में कावड़
सावन माह में जब कावड़ लेकर शिव भक्त हर हर बम बम बोलते हुए निकलता है।तो भगवान शंकर माँ पार्वती सन्घ भक्तो को दर्शन देने के लिए स्वयम् भक्तो के बीच कावड़ लेकर भ्रमण करते है।बाबा भोले के इस अदभुत लीला के लिए धरती माता हरयाली की चादर बिछा कर स्वयम् सज धज कर बाबा भोले के बाल रूप से लेकर तरुण अवस्था का अलौकन करती है ।सावन माह में भाई बहन का प्यार प्रगाढ़ हो जाता।बहने भाई के कलाई पर रक्षा बांध कर अपने रक्षा केलिए सन्कल्प लेती है।उधर भगवान शंकर भी अपने ससुराल माँ पार्वती के संघ् सारंग ऋषि के पास काशी के सारनाथ में जाते है।जहां सभी कांवड़ में गंगा के जल कोलेकर जलाभिषेक करने गेरुआ रंग के परिधान में निकलकर शिवधामपहुंचते है।सावन मास में भगवान शंकर के गले में रहने वालेविषधर महाराज भी भक्तोंके दर्शन करने व दर्शन देने निकलते है।जहां ग्रामवासी शहरवासी दूध लावा चढ़ाते है।वही किसान की फसल भी हरियाली रूप में पूरी धरती पर फ़ैल जाती है ऐसा लगता है धरती माँ सावन माह में हरे परिधान पहन कर लहलहाती फसल के साथ किसानो का स्वागत करने आई है।सावन माहV में नव युवतियां भी पेड़ो पर झूले डाल कर कजरी गीत गाती है।सावन माह अदभुत नज़ारा देख कर भगवान शंकर अपने कावड़ भक्तो के भक्ति को देख कर प्रसन्न हो जाते है।
डॉक्टर लियाकत अली जलज
वाराणसी 8726465674
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सावन में कावड़ का महत्व
सावन माह हरियाली से भरा हुआ माह शुरू होता हैं। जिसमें सभी के मन में कुछ न कुछ नई नई प्रतिक्रिया चलती हैं। सभी चारो ओर निहारते हैं।तो मन मस्त हो जाता हैं। और सावन के माह के प्रथम सोमवार के साथ शिव जी का अराधन होने लगता हैं। पानी की बरसात भी होने लगती हैं। तो अनुपम दृश्य बनता हैं। इसी फिर कावड़ को लेकर सभी अपने घर से तीर्थ के लिए निकलते हैं। सभी लोग सज धज कर चलते हैं। ईश्वर की कृपा पाने के लिए।प्राचीन समय से ऐसा होता चला आ रहा हैं।तब प्रभु की कृपा हम भक्तो पर बरसती हैं।और फिर सभी गाते हुये।जय जय भोले हर हर गंगे गाते...........हुये चलते हैं।......
नीतेन्द्र " भारत "
छतरपुर ( म.प्र. )
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सावन में काँवड़
यही माह है जब सागर मंथन में कालकूट विष निकला पूरा ब्रह्मांड विष-ताप से दग्ध हो उठा तो सारे देव मिलकर शिव के पास पहुंचे और कष्ट हरण की प्रार्थना की भोलाभंडारी ने कल्याण कारी भावना के वशीभूत विष कंठ में समा तो लिया किन्तु ताप से व्याकुल हो उठे तो सबने जल स्नान शुरु कराया तभी से सावन में यह जल चढ़ाने की प्रथा आरम्भ हो गई।
जय जय
कौशल कुमार पाण्डेय "आस"बीसलपुरी
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हर हर महादेव ! हर हर महादेव !
जय - जय शिव शंकर ! जय - जय शिव शंकर ! बोल बम बोल बम, बम बोल - बोल बम!
आदि नारे लगाते हुए काँवरिए 30 - 40 की संख्या में रोड पर चले जा रहे थे| बड़ा सुन्दर मनोहारी दृश्य लगता है, सभी का एक जैसा पीताम्बर वस्त्र, एक जैसी ही बोली, एक ही मंजिल, एक ही देव, जो पूरे संसार के देव है, देवों का भी देव है, महादेव है ! ऐसे देव की आराधना एवं तप कष्टप्रद भी हो तो आनन्दमयी लगता है|
परन्तु यह क्या हुआ ? रोड पर जाम लग गया, आगे बढ़ने पर पता चला कि एक आटो वाले को जगह नहीं मिल रही थी काँवरिए सड़क के बीचोबीच से जा रहे थे, आटो वाले ने कई बार हार्न बजाया तो काँवरिए उसको मिलकर पीटने लगे| जाम काफी बढ़ गया| काफी मशक्कत के बाद आमजन अपने घर पहुँचे|
सरकार ने काँवरियों को छूट तो दी है, कहीं से भी आने जाने की
परन्तु क्या ? आम रास्ते या रोड पर ऐसी हरकतो की भी छूट है, इसके लिए भी कुछ नियम तो बनने ही चाहिए| धर्म और पूजापाठ सदैव सौम्यता, सहजता एवं सहनशीलता की शिक्षा देता है, और एकता या संघ शक्ति का उपयोग बुराई और अत्याचार से लड़ने के लिए होता है, आम जनमानस को परेशान करने के लिए नही|
🙏धन्यवाद
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
इलाहाबाद उ० प्र०
सावन में काँवड़ का महत्व
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सावन का महीना ठंडक देने वाला होता है , जी शिव जी को बहुत पसंद है । ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी करखल ( हरिद्वार ) में निवास करते हैं और भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोकों की देखभाल करते हैं । इसीलिए काँवड़िये गंगाजल लेने हरिद्वार जाते हैं , और भगवान शिव का अभिसिंचिन कर आराधना पूजा करते हैं| अन्य आमजन भी आते जाते हुए काँवड़ियों के संग सावन को त्योहार की तरह धूमधाम से मनाते हैं व गाजे - बाजे काँवर यात्रा का जुलूस निकालते हैं|
एक मान्यता यह भी है कि समुद्र - मंथन के समय शिव जी का शरीर हलाहल विष से जलने लगा तो देवताओं ने उन पर ठंडे जल की वर्षा करके शरीर को ठंडक पहुँचायी| अत: इसका महत्व बढ़ गया , और काँवड़िये शिव भगवान को ठंडक पहुँचाने के लिए जल भरकर लाते हैं और भगवान शिव को अर्पित करते हैं ।
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(C)रवि रश्मि ' अनुभूति '
11.8.2018 , 4: 50 पी. एम. पर लिखित ।
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विषय काल की समीक्षा
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प्रथम विषयक रचना के रूप में डॉ० लियाकत अली 'जलज' जी का सावन में कावड़ विषय पर आलेख मन को प्रफुल्लित भी कर रहा है और सावन का भरपूर आनन्द लेने की सीख भी दे रहा है| ऐसी अद्भुत अनुपम लेखनी और कौशलपूर्ण ज्ञान डॉ० लियाकत अली 'जलज' जी के व्यक्तित्व पर चार चाँद लगाते हैं, एवं सभी कलमकारों के लिए प्रेरणाप्रद भी है| बाबा विश्वनाथ जगत पिता भोले शंकर की असीम कृपा है आप पर| शिवधाम काशी में बचपन से अब तक की आपकी साधना का प्रसाद आपको अवश्य मिलता रहेगा, माँ वागेश्वरी का भी आशीर्वाद प्राप्त है आपको| उत्कृष्ट सारगर्भित आलेख हेतु हृदय तल से बधाई एवं साधुवाद|
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अनुज नीतेन्द्र सिंह परमार 'भारत' जी
सरलता सौम्यता सौन्दर्य सहजता समरसता सौहार्द एवं सहकारिता से परिपूर्ण आपका आलेख कम वाक्यों में भी काफी कुछ अभिव्यक्त कर रहा है| वाक्य विन्यास और सुगठित करने की जरुरत है| एक भाव का पूरा अर्थ स्पष्ट होने पर ही दूसरी बात कहे, मतलब अर्थ में क्रमिक सामन्जस्य हो|
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आ० कौशल कुमार पाण्डेय 'आस' दादा श्री का अनुपम अप्रतिम शानदार आलेख हमें कम शब्दों में समुद्र मंथन से निकले हलाहल और शिव जी ने विषपान कर कण्ठ में उतार लिया जिससे उत्पन्न गर्मी को ठण्डा करने हेतु जल सिंचन की मान्यता हर वर्ष सावन माह में काँवरिए पूरी करते हैं|
_समय मिलने पर कहानी का विस्तार अवश्य हो |_
आत्मिक बधाई एवं साधुवाद
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वाह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बहुत ही बेहतरीन अप्रतिम अद्भुत आलेख आ० रवि रश्मि 'अनुभूति' जी,
राजा दक्ष प्रजापति की नगरी में भोलेनाथ का सावन माह में प्रवास भूलोकवासियों के लिए मोक्षदायक फलदायक एवं आनन्दमयी है|
हलाहल विष को ठण्डा करने हेतु शिव का अभिसिंचिन/रूद्राभिषेक सभी कष्टों को हर के मनुष्य को सुख एवं आनन्द प्रदान करता है|
सारगर्भित आलेख से पौराणिक जानकारी के उल्लेख हेतु आपका बहुत बहुत आभार एवं शुभकामनाएँ|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
ए. के• मिश्रा जी की समीक्षा
नमन करूँ मां शारदे,रखना हमरी लाज |
बहुत बड़ा कार्य मिला,करने को है आज ||
1. सर्वप्रथम आदरणीय "इन्द्र शर्मा शचि" जी के द्वारा रचित श्री कृष्ण दोहावली अत्यंत सुंदर और मनमोहक जिससे पटल पर भक्ति का प्रवाह हो गया | आदरणीय बहुत बहुत बधाई |
2. आदरणीय "श्री एस. के. कपूर श्री हंस " जी के द्वारा प्रस्तुत सुविचार जिससे की हमे हमेशा अच्छे सभ्य एवं संस्कारी व्यक्तियों का संगत और अनुसरण करना चाहिये पता चलता है | आपको बहुत बधाई आदरणीय |
3.आदरणीय श्री "शीतल प्रसाद" जी के द्वारा प्रस्तुत शिव स्तुति (वन्दना) अत्यंत सुंदर एवं भक्ति से परिपूर्ण रही| आदरणीय आपको बहुत बधाई |
4.आदरणीय श्री "बिजेन्द्र सिंह सरल" दादा द्वारा प्रस्तुत मंगलम सुप्रभातम् "तिलका छंद" मे बहुत सुंदर एवं सराहनीय | आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय |
5.आदरणीय "डॉ. लियाकत अली" जी के द्वारा रचित लेख "सावन मे कावड़" वह शिव भक्तों की भक्ति का बखान करता तो है साथ ही भगवान शंकर एवं माता गौरा का अपने भक्तो के प्रति स्नेह और प्रगाढ़ भक्ति को दर्शाता है|
आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय |
5.आदरणीय श्री "नीतेन्द्र भारत" जी ने भी सावन मे कावड़ का महत्व बतलाया है जो की बहुत ही सराहनीय एवं जानकारी युक्त है |आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय
6.आदरणीय श्री कौशल कुमार पाण्डेय "आस" दादा श्री द्वारा संक्षेप मे सावन मे काँवड़ के महत्व पर इसके धार्मिक एवं ऐतिहासिक कथा को सागर मंथन से शुरू कर बतलाने का कार्य जानकारीयों से युक्त एवं हमसब हेतु बहुत उपयोगी है |
आपको बहुत बहुत बधाई दादा श्री |
7. आदरणीय "डॉ. राहुल शुक्ल साहिल" जी द्वारा बिषय पर रचित रचना शुरूआत मे तो शिवभक्तों की भक्ति का बयान करे हुये श्री "साहिल" दादा को आनंद तो मिलता परंतु जो दादा आपने यहाँ शिवभक्ति एवं कावड़ यात्रा के नाम पर गुंडागर्दी,मारपिट का वरणन किया है वस्तुतः आज हर जगह यही हो रहा |आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय दादा श्री
8.आदरणीया "रवि रश्मि अनुभूति" जी के द्वारा प्रस्तुत लेख सावन मे काँवड़ के महत्व को बताता है बहुत सुंदर लेख |बहुत बहुत बधाई आदरणीया |
आप सभी की रचनायें बहुत ही सुंदर एवं जानकारीयों से परिपूर्ण है आप सभी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
अखिल कुमार मिश्रा "अक्षय"
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