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बाढ़
ईश्वर प्रदत्त सृष्टि में प्रकृति का सौन्दर्य उपहारों से प्राणिजगत का स्वत: ही उद्धार होता रहता है| प्राकृतिक संसाधनों से मानव एवं जीव जन्तु लाभान्वित होते हैं| अविरल प्रवाहित वायु से प्राणिजन को प्राणवायु आक्सीजन के रूप में मिलती रहती है, एवं पेड़ पौधें से मधुर पवन एवं पावन जीवन की रसधारा बहती रहती है| कुओं, नदियों, तालाबों, पोखरों एवं अन्य जल स्त्रोतों से जल की साम्यावस्था बनी रहती है| प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग आवश्यकतानुसार मानव जाति को प्राप्त करना चाहिए| शहरीकरण, आधुनिकता, औद्योगिक प्रगति, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, वनों के कटाव, मृदा अपरदन एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग या दोहन ही प्रकृति को कुपित होने एवं प्राकृतिक असंतुलन का कारण बनता है| असीमित अत्यधिक प्राकृतिक दोहन एवं जीव -जन्तुओं विशेषकर गाय (गौ) एवं दुधारू पशुओं का वध या काटा जाना भी प्राकृतिक आपदाओं के बुलावा है | मानव एवं अन्य जीवों द्वारा जल संसाधनों का दुरुपयोग एक प्रकार का प्राकृतिक व्यवस्था में व्यवधान है|
नदियों के सही कटाव , किनारों के मृदा कटाव को रोकने के लिए वृक्षारोपण सही ढ़ग सा न हो पाना, वर्षा जल की निकाल व्यवस्था समुचित ढ़ग से ना होना, नालियाँ एवं बढ़े नालों की निकास व्यवस्था ठीक ना होना, पक्की नालियाँ ना होना, इत्यादि नदियों में बाढ़ के कारण हैं, जिससे जनमानस को अपार परेशानियों का सामना करना पड़ता है |
वनों एवं वृक्षों के कटाव से भी संबंधित क्षेत्रों में असीमित वर्षा होती है, अत्यधिक बारिश नदी के जल स्तर को बढ़ाता है, जल बढ़ते - बढ़ते रिहायशी इलाकों में बाढ़ का रूप लेकर घरों तक चला जाता है|
बाढ़ का भयानक रूप देखकर जन सामान्य में वीभत्स की स्थिति बनती है | बाढ़ से बचने के उपायों एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए मनुष्य को अभ्यास करना चाहिए |
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण सदुपयोग की जानकारी लेनी एवं देनी चाहिए ; अन्य लोगों को भी जागरूक करना चाहिए|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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