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जीवनोपयोगी सूत्र/मंत्र

    रुण सागर  जी के 20 जीवनोपयोगी मँत्र

👏1.खुद की कमाई  से कम
        खर्च हो ऐसी जिन्दगी
        बनाओ..!

👏2. दिन  में कम  से कम
         तीन लोगो की प्रशंसा करो..!

👏3. खुद की भूल स्वीकारने
         में कभी भी संकोच मत
         करो..!

👏4. किसी  के सपनो पर  हँसो
          मत..!

👏5. आपके पीछे खडे व्यक्ति
          को भी कभी -कभी आगे
          जाने का मौका दो..!

👏6. रोज हो सके तो सूरज को
         उगता हुए देखे..!

👏7. खूब जरुरी हो तभी कोई
         चीज उधार लो..!

👏8. किसी के पास  से  कुछ
         जानना हो तो विवेक से
         दो बार...पूछो..!

👏9. कर्ज और शत्रु को कभी
          बड़ा मत होने दो..!

👏10. स्वंय पर पूरा भरोसा
            रखो..!

👏11. प्रार्थना करना कभी
           मत भूलो,प्रार्थना में
           अपार शक्ति होती है..!

👏12. अपने काम  से मतलब
            रखो..!

👏13. समय सबसे ज्यादा
           कीमती है, इसको फालतू
           कामों में व्यर्थ मत करो..!

👏14. जो आपके पास है, उसी
            में खुश रहना सीखो..!

👏15. बुराई कभी भी किसी कि
           भी मत करो, क्योकिँ  बुराई नाव  मेँ
           छेद समान है, बुराई
           छोटी हो या बड़ी, नाव तो
           डुबो ही देती  है..!

👏16. हमेशा सकारात्मक सोच
            रखो..!

👏17. हर व्यक्ति एक हुनर
           लेकर  पैदा होता है बस
           उस हुनर को दुनिया के
           सामने लाओ..!

👏18. कोई काम छोटा नही
            होता हर काम बडा होता
            है जैसे कि सोचो जो
            काम आप कर रहे हो
            अगर वह काम
            आप नही करते हो तो
             दुनिया पर क्या असर
             होता..?

👏19. सफलता उनको ही
            मिलती  है जो कुछ
            करते  है|

👏20. कुछ पाने के लिए कुछ
            खोना नही बल्कि  कुछ
            करना पड़ता है|

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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