🌴 असंबधा छंद 🌴
विधान~
[ मगण तगण नगण सगण+गुरु गुरु]
(222 221 111 112 22)
14 वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]
माया
माया में काहे भटकत मनु हैं सारे|
काया से सेवा जनसुख कर ले प्यारे||
आना है जाना पुनि -पुनि जग में भारी|
लेखा कर्मों का रघुवर भज संसारी||
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
🌴 असंबधा छंद 🌴
विधान~
[ मगण तगण नगण सगण+गुरु गुरु]
(222 221 111 112 22)
14 वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]
कैसी ये माया सब जगत नचाती है।
देती है क्या साथ विलग रह जाती है।।
भूला काहे झंझट तज जग के सारे।
मानो मेरी तो गुण रघुपति के गा रे।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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