जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पंजी० २२६ बीसलपुर पीलीभीत उ० प्र० का आनलाइन आभासी पटल _"जय जय हिन्दी"_
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🌱 समीक्षा 🌱
दिनांकः१८-०८-२०१८~
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दो शब्द "भोर अभिनन्दनः" के साथ ही पटल के दरवाजे पर दस्तक हुई और पटल पर आज के दिन की औपचारिक शुरूआत हुयी । " भोर होत ही याद दिलावें आज है क्या क्या करना..."....बस इसी भाव और निष्ठा को हमेशा की भाँति मन में संजोये आ० सुशीला धस्माना 'मुस्कान' दीदी ने दैनिक कार्यक्रम को पटल पर रखा और सभी को आज के विषय आदि के बारे जानकारी प्रस्तुत की । इस माध्यम से मौन रूप ही सबको सृजन हेतु आमंत्रित किया। प्रातः कालीन बेला में आ० भावना प्रवीन सिंह जी ने सस्वर मधुर वाणी वन्दना करके सबकी मंगल कामना की और सभी के कल्याण हेतु माँ को पुकारा । कृष्ण के भक्ति में डूबे हुये दोहों का संकलन लेकर आ० इन्दू शर्मा शचि जी ने पलट पर उपस्थिति दी और पूरे परे पटल को कान्हा की भक्ति में सराबोर कर दिया । मित्र सुदामा का अधीर होकर कृष्ण दर्शन की व्याकुलता को सन्दर्भित करती अत्यंत सुन्दर रचना पटल पर सजीवता छोड़ गई । आ० शचि जी मनमोहन भगवान श्रीकृष्ण पर निरन्तर भक्तिमय सृजन के लिए जानी जाती हैं ।
धीरे धीरे भगवान भास्कर की गतिशीलता के संग संग समय बढने लगा और इन्तजार होने लगा कि कौन कौन से कलमवीर आज के विषय' "साजन" पर अपनी अपनी कलम की अँगडाई को साथ देते हुये सृजन करके पटल से जोड़ जाते हैं और अपनी छवि छोड़ जाते हैं। सूरज की किरणें आसमान के मध्य से विश्व पटल पर पड़ने लगीं पर जय जय हिंदी पटल पर एक भी बिषय सम्बन्धित रचना का आगमन नहीं । लोग कहाँ खो गये ? तभी पटल पर एक रचना प्रकट होती हुयी और अचानक ही मन में कुछ भाव आये---
पटल है सूना, दिन ना बीते, हो जाये ना रैना ।
राख पटल की लाज गीत एक लेकर आई नैना ।।
समय की धार में विषय पर पहली रचना का प्रवाह लेकर उपस्थित हुयीं आ० गगन उपाध्याय "नैना" जी जिन्होंने अपने गीत में सखी को माध्यम के रूप प्रस्तुत किया जिससे जिज्ञासा युक्त तमाम प्रश्न उत्तर करते हुये वियोग का अति सुन्दर प्रस्तुतीकरण दी । इनकी रचना ने पटल की शान्त लहरों में पत्थर मारने का भी काम किया जिससे कुछ लोगों की निद्रा टूटी और आँखों को मसलते हुये अपने वाट्सअप के गलियारे में ताका । फिर हुयी गतिविधियों को मेरी कलम ने शब्दों के समूह इस प्रकार संयोजित किया है---
पूछ लियो अब प्रखर भी कौन विषय है आज ।
ना देखे वो सूचना करत रह्यों कुछ काज ।।
नमन जैन फिर त्वरित ही विषय दियो बतलाय ।
जय जय वन्देमातरम कविता दियो बनाय ।।
पटल रखीं फिर सूचना, तब दीदी मुस्कान ।
बतला दीं सबको विषय, पूरा विधि विधान ।।
इस हलचल के बाद पटल की गतिविधियों में तेजी का समावेश पाया गया । फिर क्या था , आ० सन्तोष कुमार 'प्रीत' जी ने अपने चिर परिचित अन्दाज में कुण्डलिया विधा में रचना को पटल पर रखा । साजन सजनी को एक दूसरे का पूरक बताते हुये श्रृंगार रस को संचारित करती हुयी ये रचना वियोग को भी समाहित कर कम पंक्तियों में भी भावों से ओतप्रोत दिखी । प्रातः श्रीकृष्ण वन्दना के साथ अपनी उपस्थिति को दर्ज कर चुकीं आ० इन्दू शर्मा 'शचि' जी ने फिर से पटल को जीवन्त करते हुये नारी के समर्पण, स्नेह, विश्वास, अपनत्व, स्वाभिमान को प्रदर्शित करती बेहतरीन रचना को रखा और अपने बहुआयामी रचनात्मकता का उदाहरण प्रस्तुत किया । "कुछ शब्द लिखा पर सार लिखा, ये प्रतिभा ले परमार लिखा " ..इन्हीं भावों से सन्दर्भ रखते हुये अनुज नितेन्द्र सिंह परमार "भारत" ने विषय पर दो पंक्तियाँ रचकर पटल को गुदगुदाया । गीतों, छन्दों, गज़लों आदि में सिद्धि एवं प्रसिद्धि को प्राप्त कर चुके आ० सिद्धनाथ शर्मा "सिद्ध" जी ने अतीव सुन्दर गीतिका में वियोग को समाहित करने में परिवारिक परिस्थितियों के चुभन, टीस, दुख आदि के साथ साथ हँसी-ठिठोली, महक, प्यार आदि को सुन्दर रूप में समाहित किया । आ० प्रखर द्विवेदी जी ने दो पंक्तियाँ जय जय हिंदी परिवार को समर्पित करते हुए बहुत ही लाजवाब कुण्डलिया को पटल पर रखा और साजन को सजनी के लिये ईश्वर रूप की मान्यता की भीनी भीनी सुगंध को महकाने में सफल रहे । रचनाओं के प्रवाह की गतिमय बेला में आ० विवेक दूबे "निश्चल" जी ने "एक कविता" शीर्षक से पटल पर उपस्थिति देने कुछ देर बाद ही पहली रचना को विलुप्त करते हुए नयी रचना के साथ प्रकट हुये । भावों का सुन्दर संयोजन का अच्छा प्रयत्न दिखाई दिया। बस टंकण सम्बंधित कुछ त्रुटियों पर ध्यान देना है । समयावधि में एक और रचना प्राप्त हुयी आ० शिवानन्द बंजारा जी के सृजन रूप में ! बहुत ही सुन्दर भावों को लिये ये गीत ये अलग छाप छोड़ गया।
समय समय पर अपनी टिप्पणियों से तात्कालिक समीक्षा, प्रोत्साहन, उत्साहवर्धन एवं जीवन्तता को सिंचित करने वालों की श्रृंखला में आ० नैना जी, आ० नमन जैन , आ० वन्देमातरम (नाम नहीं लिखा है आपने ) और आ० डॉ. राहुल शुक्ल "साहिल" जी रहे । विषेश रूप से आ० नैना जी ने त्वरित टिप्पणियों से पटल को जीवन्त करने में सफल रही।
मैंने अल्प समय में अपनी शब्द सीमा के अन्दर यथा सम्भव टिप्पणी करके समीक्षा करने की कोशिश की है। त्रुटियाँ या निजी विचारों का समावेश संभावित है । किसी भी परिस्थिति में पूर्व से ही सभी आ० विद्वत जन से क्षमा की अपेक्षा रखता हूँ।
जय जय
🌱 डॉ. सर्वेशानन्द "सर्वेश" 🌱
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